दिल का पैगाम साहिबा लाया
छंद भावो के फिर सजा लाया।
बात दिल की कही अदा से यूँ
प्यार उनका मुझे लुभा लाया।
भाग का खेल जब करे बिछडन
ये कहाँ प्यार में सजा लाया।
सात वचनों जुडा था ये बंधन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।
प्यार मरता नहीं कभी दिल में
याद तेरी सदा जिला लाया।
धूप में जल रहे ज़माने की
याद उनकी नर्म दवा लाया।
कल्पना में सदा रहोगे तुम
रात ये चाँद से हवा लाया।
आज जीने का रास्ता पाया
चाँद उनसे मुझे मिला लाया।
--------- शशि पुरवार
२५ .० ५ .१ ३
तुम उदधि मै सिंधुसुता सी
गहराई में समां जाऊं
तुम साहिल में तरंगिणी सी
बहती धारा बन जाऊं
तुम अम्बर मै धरती बन
युगसंधि में खो जाऊं
तुम शशिधर मै गंगा सी
बस शिरोधार्य हो जाऊं
तुम आतप मै छाँह सी
प्रतिछाया ही बन जाऊं
तुम दीपक मै बाती बन
नूर दे आपही जल जाऊं
तुम रूह हो मेरे जिस्म की
तुम्हारी अंगरक्षी बन जाऊं
न होगा तम जीवन में कभी
चांदनी बनके खिल जाऊं
तुम धड़कन हो मेरे दिल की
स्मृति बन साँसों में बस जाऊं
मौत भी न छू सकेगी मेरे माही
हर्षित मै रूखसत हो जाऊं
न कोई गीत ,न बहर, न गजल
व्यंजना को लफ्जों से सजाऊं
-----शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
https://sapne-shashi.blogspot.com/
-
मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
-
हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
-
साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...