जाने कहाँ आ गए हम
छोड़ी धरती
चूमा गगन .
आकांशाओ के वृक्ष पर
बारूदो का ढेर बनाया
तोड़े पहाड़ , कटाये वन
दूषित कर पवन ,रोग लगाया
सूखी हरीतिमा की छाँव
सिमटे खेत , गाँव
बना मशीनी इंसान
पत्थर की मूरत भगवान .
जग का बदला स्वरुप
नए उपकरण ,
मशीनी इंसान ,
रोबोट सीखे काम ,
नए नए आविष्कार
खूब फला कृत्रिम व्यापार
मशीनी होते काम
मानव चाहे पूर्ण आराम
माथे की मिट जाये शिकन .
भर बारूद , रोकेट
संग, उड़ चला अंतरिक
विधु पे पड़े कदम
मिला नया मुकाम ,
पर धुएं में मिले जहर से
कम होती ओजोन की छाँव
सौर मंडल पर भी
प्रदुषण के बढ़ते कदम
यह हार है या जीत
जब खतरा बन रही
जीवन पर , अविष्कारों
की बढती भीड़
न बच सकी धरणी
न छूटा गगन .
-------------शशि पुरवार