कितना बे-गैरत है जमाना
चाहते है एक आशियाँ बनाना .
मिटटी - गारा तो लाये
और फिर सामान फैला कर
इक टूटा आशिया बना दिया .
मानव मुल्यो की क्या जगह है यहाँ ,
पर कीमत तो आको
मानव खुद ही बिक जायेगा यहाँ !
प्रेम क्या है ?
पूछो इन माटी के पुतलो से -
" पैसा ही तो प्रेम है ".
सुन्दरता क्या है ?
पूछो इन हस्तियों से ,
" पैसा ही सबसे सुन्दर है " .
इंसानियत को न जानने वाले ये मानव
इंसानियत का ही ढोल पीटते है !
जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले ये मानव ,
सभ्यता को कौन सा रूप प्रदान करते है ?
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है