मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं
पिया का इंतजार
सात फेरो संग माँगा है
उम्र भर का साथ.
यूँ मिलें फिर दो अजनबी
जैसे नदी के दो किनारो
का हुआ है संगम, फिर
बदल गयी हैं दिशाए
जीवन की मधुरम हवाए
और
बहने लगी एक जलधारा .
नाजुक होते हैं यह रिश्ते
कांच से कच्चे धागों से बंधी हुई
विश्वास की डोर, दिलो की प्रीत
,पर
कठिन हैं जीवन की
पथरीली राहों का सफर.
मजबूती के साथ चल रहे हैं हम
एक गाड़ी के दो पहिये; जिसे
तोड़ न सके कोई कंकर
प्रेम की इन गलियों में
उलफत कभी न होगी कम
बस इक खलिस है
ह्रदय में;
सनम
अंतिम ख्वाहिश मानकर
जिगर में मत रखना कोई रंज
पहले इस जहान से रुकसत होंगे
हम ,
इक सुहागन बन कर ही
निकले मेरा दम
खाली रह जाएँ ना हाथ
करतल पे लगा देना मेहंदी
चढ़ जाये पुनः प्रेम का रंग ; फिर
यह जन्म न मिलेगा बार बार .
----------- शशि पुरवार