नए शहर में, किसे सुनाएँ
अपने मन का हाल
कामकाज में उलझें हैं दिन
जीना हुआ सवाल
कभी धूप है, कभी छाँव है
कभी बरसता पानी
हर दिन नई समस्या लेकर,
जन्मी नयी कहानी
बदले हैं मौसम के तेवर
टेढ़ी मेढ़ी चाल
घर की दीवारों को सुंदर
रंगों से नहलाया
बारिश की, चंचल बूँदों ने
रेखा चित्र बनाया
सीलन आन बसी कमरों में
सूरज है ननिहाल
समयचक्र की, हर पाती का
स्वागत गान किया है
खट्टे, मीठे, कडवे, फल का
भी, रसपान किया है
हर माटी से रिश्ता जोड़ें
जीवन हो खुशहाल
- शशि पुरवार
18/07/14
बढ़िया रचना व लेखन , आ. शशि जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपके बारे में जानकर सुखद लगा
ReplyDeleteबहुत अच्छी सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteएक अच्छा नवगीत !
ReplyDeleteSARAL AUR SUNDER.....
ReplyDeleteवाह..लाज़वाब अभिव्यक्ति...
ReplyDeletewaah...behtareen prastuti..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति |
ReplyDeleteकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
सुन्दर ,सरस ,सरल और सच ,
ReplyDeleteऔर साथ में सार्थक संदेश भी बधाई हो शशिजी !
कल 25/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
समयचक्र की, हर पाती का
ReplyDeleteस्वागत गान किया है
खट्टे, मीठे, कडवे, फल का
भी, रसपान किया है .........अत्यंत प्रभावी !! बधाई स्वीकार करें
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसीलन आन बसी कमरों में
ReplyDeleteसूरज है ननिहाल
सुन्दर
नए शहर में बसने की परेशानियों को बयां करता सुन्दर नवगीत ।
ReplyDeleteबढ़िया है।
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