दिल, अभी यह चाहता है
खत लिखूँ मैं इक गुलाबी
संग सखियों के पुराने
दिन सुहाने याद करना।
और छत पर बैठकर
चाँद से संवाद करना।
डाकिया आता नहीं अब,
ना महकतें खत जबाबी।
दिल अभी यह चाहता है
खत लिखूँ मैं इक गुलाबी।
सुर्ख मुखड़े पर ख़ुशी की
चाँदनी जब झिलमिलाई।
गंध गीली याद की, हिय
गंध गीली याद की, हिय
प्राण, अंतस में समाई।
सुबह, दुपहर, साँझ, साँसे
गीत गाती हैं खिताबी।
दिल अभी यह चाहता है
खत लिखूँ मैं इक गुलाबी।
मौसमी नव रंग सारे
प्रकृति में कुछ यूँ समाये
नेह के आँचल तले, हर
नेह के आँचल तले, हर
एक दीपक मुस्कुराये।
छाँव बरगद की नहीं, माँ
बात लगती हैं किताबी।
दिल अभी यह चाहता है
खत लिखूँ मैं इक गुलाबी।
-- शशि पुरवार
वाह ! बेहद खूबसूरत ......दिल तो अक्सर प्रेम ही चाहता है!!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-07-2017) को "अद्भुत अपना देश" (चर्चा अंक 2680) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 28 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " न्यू यॉर्कर बिहारी के मन की बात “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमधुर भावों की मोहक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! भावनाओं का सही तालमेल शब्दों के साथ आभार ''एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteutsah vardhan hetu aap sabhi mitron ka hraday se abhar
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletebadhiya lagi aapki rachna.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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