मेरी साँसों में तुम बसी हो क्या
पूजता हूँ जिसे वही हो क्या
थक गया, ढूंढता रहा तुमको
नम हुई आँख की नमी हो क्या
धूप सी तुम खिली रही मन में
इश्क में मोम सी जली हो क्या
राज दिल का,कहो, जरा खुलकर
मौन संवाद की धनी हो क्या
आज खामोश हो गयी कितनी
मुझसे मिलकर भी अनमनी हो क्या
लोग कहते है बंदगी मेरी
प्रेम ,पूजा,अदायगी हो क्या
दर्द बहने लगा नदी बनकर
पार सागर बनी खड़ी हो क्या
जिंदगी, जादुई इबारत हो
राग शब्दो भरी गनी हो क्या
गंध बनकर सजा हुआ माथे
पाक चन्दन में भी ढली हो क्या
-------- शशि पुरवार
खूबसूरत गजल !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-04-2014) को "टूटे पत्तों- सी जिन्दगी की कड़ियाँ" (चर्चा मंच-1578) पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ग़ज़ल शशि पुरवार जी ... बहुत बधाई ..
ReplyDeletehttp://kavineeraj.blogspot.in/2014/04/blog-post_9.html
बहुत सुन्दर ग़ज़ल बह्न शशि जी । हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबहुत खूब बधाई..
ReplyDeleteराज दिल का,कहो, जरा खुलकर
ReplyDeleteमौन संवाद की धनी हो क्या !
बहुत खूब …. मंगलकामनाएं आपको !
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...सभी अशआर बहुत उम्दा...
ReplyDeletevery nice ....
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! हर शेर मन को स्पर्श करता हुआ सा ! बहुत खूब !
ReplyDeleteहर शैर अपना अर्थ और भाव लिए मक्ते का विस्तार लिए खूबसूरत ग़ज़ल कही है :
ReplyDeleteमेरी साँसों में तुम बसी हो क्या
पूजता हूँ जिसे वही हो क्या
थक गया, ढूंढता रहा तुमको
नम हुई आँख की नमी हो क्या
धूप सी तुम खिली रही मन में
इश्क में मोम सी जली हो क्या
राज दिल का,कहो, जरा खुलकर
मौन संवाद की धनी हो क्या
आज खामोश हो गयी कितनी
मुझसे मिलकर भी अनमनी हो क्या
लोग कहते है बंदगी मेरी
प्रेम ,पूजा,अदायगी हो क्या
दर्द बहने लगा नदी बनकर
पार सागर बनी खड़ी हो क्या
जिंदगी, जादुई इबारत हो
राग शब्दो भरी गनी हो क्या
गंध बनकर सजा हुआ माथे
पाक चन्दन में भी ढली हो क्या
-------- शशि पुरवार
चर्चा भी बेहतरीन सजाई है शास्त्रीजी ने ,बधाई सेतु संयोजन और समन्वयन के लिए।
बहुत खूब .
ReplyDeletehar shanka ka samadhan chahti gazal bahut hi sunder hai .sashi ji apako badhai .
ReplyDeletepushpa mehra.
बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी कलम में दर्द जादू अनुभूति प्रेम सब कुछ भरा है ..... आभार
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeleteati utam-***
ReplyDelete☆★☆★☆
धूप सी तुम खिली रही मन में
इश्क में मोम सी जली हो क्या
आज खामोश हो गयी कितनी
मुझसे मिलकर भी अनमनी हो क्या
ओहो हो...
क्या कहने ! क्या कहने !
वाहवाऽह…!
आदरणीया शशि पुरवार जी
मत्ले से मक़्ते तक शानदार ग़ज़ल है...
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
sabdon ki aapko achhi samajh hai
ReplyDeleteआपके गजल का जबाब नहीं ......
ReplyDeleteशशि जी, सुंदर गजल की पेशकश ...
ReplyDeleteBahut hee sundar abhivayakti:)
ReplyDeleteSUNDAR GAJAL :)
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल बधाई आपको |
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