यह गीत मेरे पिता तुल्य नानाजी को समर्पित है , हम चाहें कितने भी बड़े क्यों ना हो जाएँ किन्तु कुछ स्मृतियाँ अमिट होतीं है। उनके स्मरण में --
स्मृतियोँ के घन जब घिरकर,
मन के नभमण्डल पर छाए।
याद बहुत बाबूजी आए
बाबूजी से ही सीखा था
दो और दो होते हैं चार
जीवन की अनगढ़ राहों को
अच्छे काम करें गुलजार
नन्हें हाथ थामकर जिसने
गुर, जीने के सभी सिखाए
याद बहुत बाबूजी आए
होगा पथ में उजियारा भी
उनकी शिक्षा को अपनाया
सूने मन के गलियारे में
एक ज्ञान का दीप जलाया
कभी सहेली कभी सखा बन
हर नखरे चुपचाप उठाए
याद बहुत बाबूजी आए
चिंता चाहे लाख बड़ी हो
हँसी सदा मुख पर रहती थी
तुतलाती बतियाँ चुपके से
फिर काँधे पर ही सोती थी
बरगद की शीतल छाया में
जिसने सपने सुखद सजाए
याद बहुत बाबूजी आए
- शशि पुरवार
8/9/2014
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeletenridsparshee prastuti.
ReplyDeleteसच अपनों की याद, सीख दिल में सदा बनी रहती है जो हमारे लिए प्रेरणा का काम करती रहती हैं ..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
दिल को छूती बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteयादें अमर होती है ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेखन
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 1 . 10 . 2014 दिन बुद्धवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत ही भावुक रचना जो हृदय को छु लेती है। कई बार पढ़ गया फिर भी लगता है फिर से पढ़ूँ। स्वयं शून्य
ReplyDeleteभावप्रणव सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मान्यवर,
दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का रखा गया है।
हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
कृपया मेरे ई-मेल
roopchandrashastri@gmail.com
पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
कृपया सहायता करें।
बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।