धूप सी मन में खिली है ,मंजिले पाने के बाद
इन हवाओं में नमी है फूल खिल जाने के बाद १
जिंदगी लेती रही हर रोज हमसे इम्तिहान
प्रीति ही ताकत बनी है गम के मयखाने के बाद २ नज्म हमने भी कही फिर प्रेम गहराने के बाद ३
तुम वहीं थे ,मै वहीं थी और शिकवा क्या करें
मौन बातों की झड़ी थी , दिल को बहलाने के बाद ४
प्यार का आलम यही था ,रश्क लोगों ने किया
मोम सी जलती रही मै इश्क फरमाने के बाद ५
खुशनुमा अहसास है यह बंद पृष्ठों में मिला
गंध सी उड़ती रही है फूल मुरझाने के बाद ६ वक़्त बदला ,लोग बदले ,अक्स बदला प्रेम का
मीत बनकर लूटता है , जाम छलकाने के बाद ७
प्रेम अब जेहाद बनकर, आ गया है सामने
वो मसलता है कली को ,हर सितम ढाने के बाद ८
-- शशि पुरवार
वाह !
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteजन्नत में जल प्रलय !
लाजवाब कहन |बहुत सुन्दर ग़ज़ल |
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteutkrisht.
ReplyDeleteतुम वहीं थे ,मै वहीं थी और शिकवा क्या करें
ReplyDeleteमौन बातों की झड़ी थी , दिल को बहलाने के बाद ४
...वाह...बहुत उम्दा...लाज़वाब ग़ज़ल...
bahut khoob .....
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