हवा शहर की
हवा शहर की बदल गयी
पंछी मन ही मन घबराये
यूँ जाल बिछाये बैठें है
सब आखेटक मंतर मारे
आसमान के काले बादल
जैसे ,जमा हुए है सारे.
छाई ऐसी घनघोर घटा
संकट, दबे पाँव आ जाये
कुकुरमुत्ते सा ,उगा हुआ है
गली गली ,चौराहे खतरा
लुका छुपी का ,खेल खेलते
वध जीवी ने ,पर है कतरा
बेजान तन पर नाचते है
विजय घोष करते, यह साये .
हरे भरे वन ,देवालय पर
सुंदर सुंदर रैन बसेरा
यहाँ गूंजता मीठा कलरव
ना घर तेरा ना घर मेरा
पंछी उड़ता नीलगगन में
किरणें नयी सुबह ले आये.
४ जुलाई , २०१४
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार 02 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
अति सुन्दर भावों का प्रवाह करती रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteसुंदर रचना व लेखन , आ. धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
छाई ऐसी घनघोर घटा
ReplyDeleteसंकट, दबे पाँव आ जाये
,,,,सच कब क्या हो जाय कह नहीं सकते..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteExcellent line s with deep emotion
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहरे भरे वन ,देवालय पर
ReplyDeleteसुंदर सुंदर रैन बसेरा
यहाँ गूंजता मीठा कलरव
ना घर तेरा ना घर मेरा
...वाह..बहुत सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति...
वन देवालय... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteकुकुरमुत्ते सा ,उगा हुआ है
ReplyDeleteगली गली ,चौराहे खतरा
लुका छुपी का ,खेल खेलते
वध जीवी ने ,पर है कतरा...adbhut...