दीप खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती है दिवाली
फासले होने लगे कम, दिल मिलाती है दिवाली
झोपडी में एक दीपक रोज जलता हौसलों का
पेट भर भोजन मिला जो, मुस्कुराती है दिवाली
एक साया ढूंढता है ,अधजले से कागजों में
काश मिल जाये फटाका, मन लुभाती है दिवाली.
फिर अमावश रात काली, खो गयी है रौशनी में
सत्य का जगमग उजेरा, गीत गाती है दिवाली.
-- शशि पुरवार
आप सभी ब्लॉगर परिवार और मित्रों को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
आप सभी ब्लॉगर परिवार और मित्रों को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
जय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 09/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...