आँखों में कटते हैं दिन
करवट लेते रहे रात भर
आँखों में कटते है दिन
उमस भरी रातों के पलछिन
दर्प दिखाती खड़ी इमारत
सिमटे हैं नेह दालान
किरणें आती जाती देखें
सब बंद है रौशनदान
भीतर हवा सुलगती रहती
घुटन भरी साँसें कमसिन.
सन्नाटा कमरें में पसरा
अंतस में है कोलाहल
दो पाटों के बीच घिरा, यह
नन्हा सा, मन है चंचल
इक अदद कहानी गढ़ते है
बीत रहे काले दुर्दिन.
शाम सुबह, घर दिखते साये
एक दूजे से नाराज
खिड़की दरवाजे भी सुनते
फिर टिकटिक घडी का साज
टुकड़ा टुकड़ा धूप सहेजे
वो मन अँधियारे हर दिन.
करवट लेते रहे रातभर
आँखों में कटते है दिन।
शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-0122016) को "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माहौल बहाल करें " (चर्चा अंक-2258) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 21 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
इस अंतस और सन्नाटे से बाहर आना जरूरी है ... दिन का खुला प्रकाश इंतज़ार करता है ... भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबेहतरीन कविता
ReplyDeletesunder .................!!!!!!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteखालीपन को भरती हुई कविताएँ , अपने अंदर झांककर बाहर के दायरे का अलंकन करती नज़्मों की भाषा , खैर दुआ है कि ऐसा ही लिखते रहो।
ReplyDeleteयही कहानी जीवन है ।सुंदर रचना ।
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ReplyDeleteGood !I suggest people if they want to start Hindi blogging then they should learn from your blog posts... Indian Matrimony
ReplyDeleteदो पाटों के बीच घिरा
ReplyDeleteयह नन्हा सा मन है चंचल
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कविता भी यही है और जीवन भी यही. हम सब इसी में डूबते-बहते रहते हैं.
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