धुआँ धुआँ होती व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ
सपनों की मनहर वादी है
पलक बंद कर ख्वाब सजाओ
सपनों की मनहर वादी है
पलक बंद कर ख्वाब सजाओ
लोगों की आदत होती है
दुनियाँ के परपंच बताना प्रेम त्याग अब बिसरी बातें
बदल रहा है नया जमाना।
घायल होते संवेदन को
निजता का इक पाठ पढ़ाओ।
धुआँ धुआँ होती व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ .
निजता का इक पाठ पढ़ाओ।
धुआँ धुआँ होती व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ .
दूर देश में हुआ बसेरा
अलग अलग डूबी थी रातें
कहीं उजेरा, कहीं चाँदनी
चुपके से करती है बातें
जिजीविषा, जलती पगडण्डी
तपते क़दमों को सहलाओ.
अलग अलग डूबी थी रातें
कहीं उजेरा, कहीं चाँदनी
चुपके से करती है बातें
जिजीविषा, जलती पगडण्डी
तपते क़दमों को सहलाओ.
धुआँ धुआँ होती व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ.
प्रेम राग के गीत सुनाओ.
ममता, करुणा और अहिंसा
भूल गया जग मीठी वाणी
आक्रोशों की नदियाँ बहती
हिंसा की बंदूकें तानी
झुलस रहा है मन वैशाली
भावों पर काबू पाओ
धुआँ धुआँ होती व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ
भूल गया जग मीठी वाणी
आक्रोशों की नदियाँ बहती
हिंसा की बंदूकें तानी
झुलस रहा है मन वैशाली
भावों पर काबू पाओ
धुआँ धुआँ होती व्याकुलता
प्रेम राग के गीत सुनाओ
--- शशि पुरवार
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बेहतरीन भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 17 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक नवगीत।
ReplyDeleteआपकी रचनाएं हमेशा जीवंत होती हैं। कथ्य, भाव व शिल्पी सभी सुदृढ.... आपकी रचनाओं का चहेता.... मणि
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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