shashi purwar writer

Wednesday, April 18, 2018

मन का हो उपचार


गंगा के तट पर सभी, मानव करते काम
धोना कपडा व पूजा, धरम करम के नाम
धरम करम के नाम, करें तर्पण  चीजों का
पाप पुण्य संग्राम, विषैला मन बीजों का
कहती शशि यह सत्य, न करो नदी से पंगा    
अतुल गुणों की खान, विषैली होती  गंगा  


२ 
माता तेरे द्वार का, खुला हुआ  दरबार 
भक्त सभी आतें यहाँ, मन का हो उपचार   
मन का हो उपचार, न कोई संकट आये 
भ्रम का मायाजाल, मन को ही भरमाये 
कहती शशि यह सत्य, खुला यहीं बही खाता 
मत करना बदनाम, जगत जननी है माता

3


बौराया सा दिन गया, अलसायी सी शाम
रात चिट्ठियाँ लिख रही, चंदा तेरे नाम
चंदा तेरे नाम, लिखी प्रेम भरी पाती
सपनों का संग्राम, नींद ना रातों आती
शशि कहती यह सत्य, प्रीत  में डूबी काया
दिन हो चाहे रात, मुदित तन मन बौराया। 

शशि पुरवार

समीक्षा -- है न -

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