जंगल कटते ही रहे, सूख गए तालाब
बंजर होते खेत में, ठूँठ खड़े सैलाब
जीवन यह अनमोल है, भरो प्रेम का रंग
छोटे छोटे पल यहाँ, बिखरे मोती चंग
हरी भरी सी वाटिका, है जीवन की शान
बंद हथेली खुल गई, पल में ढहा मकान
कतरा कतरा बह रहा, इन आँखों से खून
नफरत की इस आग में, बेबस हुआ सुकून
बेगैरत होने लगे, कलयुग के इंसान
लालच का व्यापार है, स्वाहा होती जान
रात रात भर झर रहे, कोमल हरसिंगार
मदमाती सी चाँदनी, धरती का श्रृंगार
आकुलता उर में हुई, मन में फिर कुहराम
ताना बाना बुन दिया, दुर्बलता के नाम
राहों में मिलते रहे, अभिलाषा के वृक्ष
डाली से कटकर मिला अवसादों का कक्ष
सत्ता में होने लगा, जंगल जैसा राज
गीदड़ भी आते नहीं, तिड़कम से फिर बाज
शशि पुरवार
बंजर होते खेत में, ठूँठ खड़े सैलाब
जीवन यह अनमोल है, भरो प्रेम का रंग
छोटे छोटे पल यहाँ, बिखरे मोती चंग
हरी भरी सी वाटिका, है जीवन की शान
बंद हथेली खुल गई, पल में ढहा मकान
कतरा कतरा बह रहा, इन आँखों से खून
नफरत की इस आग में, बेबस हुआ सुकून
बेगैरत होने लगे, कलयुग के इंसान
लालच का व्यापार है, स्वाहा होती जान
रात रात भर झर रहे, कोमल हरसिंगार
मदमाती सी चाँदनी, धरती का श्रृंगार
आकुलता उर में हुई, मन में फिर कुहराम
ताना बाना बुन दिया, दुर्बलता के नाम
राहों में मिलते रहे, अभिलाषा के वृक्ष
डाली से कटकर मिला अवसादों का कक्ष
सत्ता में होने लगा, जंगल जैसा राज
गीदड़ भी आते नहीं, तिड़कम से फिर बाज
शशि पुरवार

