उमर
सलोनी चुलबुली,
सपन
चढ़े परवान
आलोकित
शीशा लगे,
हीरे
सा प्रतिमान1
एक
सुहानी शाम का,
दिलकश
हो अंदाज
मौन
थिरकता ही रहे ,
हृदय
बने कविराज2
मन
के रेगिस्तान में,
भटक
रही है प्यास
अंगारों
की सेज पर,
जीने
का अभ्यास3
निखर
गया है धूप में,
झरा
फूल कचनार
गुलमोहर
की छाँव में,
पनप
रहा है प्यार4
कुर्सी
पर बैठे हुए,
खुद
को समझे दूत
संकट
छाया देश पर,
ऐसे
पूत कपूत5
पाप
पुण्य का खेल है,
कर्मों
का आव्हान
पाखंडी
के जाल में ,
मत
फँसना इंसान6
झूम
रही है डालियाँ,
बूॅंद
करे उत्पात
बरखा
रानी आ गई,
भीगे
तन मन पात 7
आॅंगन
में बरगद नहीं,
ना
शहरों से गाॅंव
ना
चौपाले नेह की,
घड़ियाली
है छाॅंव 8
चाँदी
की थाली सजी,
फिर
शाही पकवान
माँ
बेबस लाचार थी,
दंभ
भरे इंसान 9
शशि पुरवार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-06-2018) को "मौसम में बदलाव" (चर्चा अंक-2999) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ...
ReplyDeleteदिल में उतरते हैं सभी दोहे ... अलग अलग रस पर एक सी बहार ..
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, २ महान क्रांतिकारियों की स्मृतियों को समर्पित ११ जून “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteकमाल के दोहे ...
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