उत्सव की वह सौंधी खुशबू
ना अंगूरी बेल
गली मुहल्ले भूल गए हैं
बच्चों वाले खेल
लट्टू, कंचे, चंग, लगौरी
बीते कल के रंग
बचपन कैद हुआ कमरों में
मोबाइल के संग
बंद पड़ी है अब बगिया में
छुक छुक वाली रेल
गली मुहल्ले भूल गए हैं
बच्चों वाले खेल.
बारिश का मौसम है, दिल में
आता बहुत उछाव
लेकिन बच्चे नहीं चलाते
अब कागज की नाव
अंबिया लटक रही पेड़ों पर
चलती नहीं गुलेल
गली मुहल्ले भूल गए हैं
बच्चों वाले खेल.
दादा - दादी, नाना - नानी
बदल गए हालात
राजा - रानी, परी कहानी
नहीं सुनाती रात
छत पर तारों की गिनती
सपनों ने कसी नकेल
गली मुहल्ले भूल गए हैं
बच्चों वाले खेल.
शशि पुरवार
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ईद मुबारक - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत सुन्दर नवगीत।
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १८ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १८ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया 'शशि' पुरवार जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
बहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteसच खा बाई बच्चों वाले खेल और उनके जैसा भोलापन अब कहाँ है ... अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं ...
बहुत सुंदर रचना है बच्चों के साथ बड़ों के दिल को भी छूती हुयी ...
बहुत सुंदर रचना। बचपन खोता जा रहा है और हम विकास की नैया में सवार डूब कर भी खुश हो रहे हैं।
ReplyDeleteसादर
सच आजकल के बच्चों का खेल पहले जैसे नहीं रहा, वह बीते ज़माने की बात हो गई, हमारी तरह पुरानी, लेकिन हमें तो आज भी बहुत याद आते हैं वे दिन
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। जन्मदिन आने पर बचपन याद आना लाज़मी है
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!