आँखों में अंगार है, सीने में भी दर्द
कुंठित मन के रोग हैं, आतंकी नामर्द१
व्यर्थ कभी होगा नहीं, सैनिक का बलदान
आतंकी को मार कर, देना होगा मान२
चैन वहां बसता नहीं, जहाँ झूठ के लाल
सच की छाया में मिली, सुख की रोटी दाल३
लगी उदर में आग है, कंठ हुए हलकान
पत्थर तोड़े जिंदगी, हाथ गढ़े मकान४
आँखों से करने लगे, भावों का इजहार
भूले बिसरे हो गए, पत्रों के व्यवहार५
तन माटी का रूप है, क्या मानव की साख
लोटा भर कर अस्थियां, केवल ठंडी राख ६
शशि पुरवार
कुंठित मन के रोग हैं, आतंकी नामर्द१
व्यर्थ कभी होगा नहीं, सैनिक का बलदान
आतंकी को मार कर, देना होगा मान२
चैन वहां बसता नहीं, जहाँ झूठ के लाल
सच की छाया में मिली, सुख की रोटी दाल३
लगी उदर में आग है, कंठ हुए हलकान
पत्थर तोड़े जिंदगी, हाथ गढ़े मकान४
आँखों से करने लगे, भावों का इजहार
भूले बिसरे हो गए, पत्रों के व्यवहार५
तन माटी का रूप है, क्या मानव की साख
लोटा भर कर अस्थियां, केवल ठंडी राख ६
शशि पुरवार

