आँखों में अंगार है, सीने में भी दर्द
कुंठित मन के रोग हैं, आतंकी नामर्द१
व्यर्थ कभी होगा नहीं, सैनिक का बलदान
आतंकी को मार कर, देना होगा मान२
चैन वहां बसता नहीं, जहाँ झूठ के लाल
सच की छाया में मिली, सुख की रोटी दाल३
लगी उदर में आग है, कंठ हुए हलकान
पत्थर तोड़े जिंदगी, हाथ गढ़े मकान४
आँखों से करने लगे, भावों का इजहार
भूले बिसरे हो गए, पत्रों के व्यवहार५
तन माटी का रूप है, क्या मानव की साख
लोटा भर कर अस्थियां, केवल ठंडी राख ६
शशि पुरवार
कुंठित मन के रोग हैं, आतंकी नामर्द१
व्यर्थ कभी होगा नहीं, सैनिक का बलदान
आतंकी को मार कर, देना होगा मान२
चैन वहां बसता नहीं, जहाँ झूठ के लाल
सच की छाया में मिली, सुख की रोटी दाल३
लगी उदर में आग है, कंठ हुए हलकान
पत्थर तोड़े जिंदगी, हाथ गढ़े मकान४
आँखों से करने लगे, भावों का इजहार
भूले बिसरे हो गए, पत्रों के व्यवहार५
तन माटी का रूप है, क्या मानव की साख
लोटा भर कर अस्थियां, केवल ठंडी राख ६
शशि पुरवार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (25-04-2019) को "एक दिमाग करोड़ों लगाम" (चर्चा अंक-3316) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुन्दर... लाजवाब
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत खूब
ReplyDeleteनयी चेतना से ओतप्रोत दोहों के लिए बधाई । हरेराम समीप ।
ReplyDeleteआप सभी माननीय सुधीजनों का हृदय से आभार
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