मूर्खदेव जयते
आज महामूर्ख सम्मलेन अपनी पराकाष्ठा पर था। सम्मलेन में मौजूद मूर्खो की संख्या देखकर हम सम्मेलन के मुरीद हो गए. हमें एहसास हुआ कि हम मूर्खानगरी के नागरिक है , दुनिया ही मूर्खो की है तो हम कहाँ से पृथक हुए। खरबूजे को देख खरबूजा ही रंग बदलता है , किन्तु यहाँ हर रंग अपने सिर पर मूर्खो का ताज सजाने को आमादा है।
सम्मेलन में शामिल सभी महामूर्खो ने अपनी-अपनी मूर्खता की पराकाष्ठा का परिचय श्रोताओं को दिया। आयोजन समिति द्वारा सभी गणमान्यों व जनता से जुडी हस्तियों को अलग-अलग अलंकरणों से नवाजा गया। आयोजन समिति
द्वारा सभी गणमान्यों सहित राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा, समाजसेवा, प्रशासन आदि से जुड़े हस्तियों को अलग-अलग अलंकरणों से नवाजा गया। राजनेता शंकर खैनी को महामूर्ख शिरोमणि, शिक्षा में अशिक्षित देवधर महामूर्ख रत्नेश्वर, चिकित्सा में छोला छाप सेवक को मूर्ख सम्राट, मूर्ख शिसरोमणि, महामूर्ख मातर्ड, मूर्खाधिपति, मूर्खनंदन आदि अनंत उपाधियाँ लगभग कर कार्य क्षेत्र में बांटी गयी है। सबकी चर्चा करने में शर्मा जी शर्मा रहे थे। आज पहला अध्याय ही पढ़ने का मन है।
हमारे महामूर्ख शिरोमणि ने सम्मान उपाधि मिलते ही अपने खुशफहम शब्दों व आत्ममुग्धता के द्वारा आवरण की परतें उखाड़ना शुरू कर दी।
नेता जी बेहद खुश अपने मूर्ख होने की पराकाष्ठा का वर्णन कर रहे थे -
सबरी जनता वाकई मूर्ख है तभी तो जनता को मूर्ख बनाने वाले नेता का गिरेबान; आज हाथ में आ ही गया। आज अंततः मूर्ख शिरोमणि की उपाधि से नवाजा जाना; उनके कर्म क्षेत्र का सम्मान है। वैसे भी कर्म तो कुछ करते नहीं हैं , बस ससुरी जबान का पैसा खातें है लेकिन अब वह जबान भी फिसलती
रहती है। आज जब देश पर संकट छाया है तब भी खैनी जी को खैनी खाने से फुर्सत नहीं है , बिना बात के बबाल मचा रखा है. पक्ष विपक्ष से ज्यादा चर्चा में रहने के लिए ऐसे बोलबच्चन कहने पड़ते है। पक्ष क्या बिपक्ष क्या सभी एक थाली के चट्टे बट्टे है। आप किसी भी देश में देखें जनता और
सत्ता का सम्बन्ध एक दूजे के साथ सिर्फ पैसा फेंक तमाशा देख जैसा ही है।
जिसे देखो काटने पर तुला है और बेवक़ूफ़ जनता हर बार मोलभाव करके गद्दी का भार सौंपती है और कुछ ही दिन में उकता कर जमीन पर पड़ी दरी खींचने का भरकस प्रयास करने लगती है। अब ज्यादा तारीफ़ करने के चक्कर में खैनी जी
की जबान वाकई पूर्णतः फिसलने लगी।
ससुरे बगल वाले का टटुआ दबा देंगे। मारधाड़ में निपुण लोग अपना काम करते रहे। इधर हाल ही में सरहद पर छींटा कशी हुई और पडोसी राज्य के महा मूर्ख छिपानन्द कहने लगे हमने तो बारिश देखी ही नहीं है; हमारे यहाँ बारिश के कोई निशान शेष नहीं है । लो जी उनके सेर को सवा सेर भी मिल गया ,
जनता के मूर्ख सम्राट सामने आकर बोलबच्चन के मंत्र पढ़ने लगे :-
आज तेज आंधी तूफान में हमारी फसलें तबाह हुई है। आकाश पर मंडराते काळा बादल फट गए और यहाँ गड्ढा हो गया। बारिश हुई तो धरती पानी निगल गयी। लेकिन सोना नहीं मिला। रोज रोज फावड़ा लेकर सोना ढूंढ रहें है , ससुरा मिल जाये तो गुपच लेंगे।
इधर मुर्खाधिपति अपना माइक लेकर सामने आ गए - आज के ताजा समाचार -
यही वह आदमी है जो दिन में भी चार चार फैनी खाकर सोता रहता है। आज जलेबी खाने में लगा हुआ है। आप इसको हमारे कैमरे में देख सकतें है। इसका ध्यान दूसरे मूर्खो पर है ही नहीं। अरे बादल फटे तो झट से वहां पहुँच गया कि शायद गड्ढे में इसे पुराना पुरखो का धन मिल सकता है।
दूसरे हमारे मूर्ख सम्राट है जिन्हें समझ ही नहीं आता है कि बादल फटने से गड्ढा ही होगा , छप्पन भोग का छींका नहीं फूटा है। जब देखो सम्राट अक्सर धरने पर बैठ जाते हैं , साथ ही अन्नपूर्णा माता का अपमान न करते हुए चुपचाप जूस की सिप लगाते रहतें है।
आज सारे अडोसी - पडोसी मूर्खों के सरताज सम्मलेन में शामिल होने आ रहें है। जब आग जले तो हाथ सेंक लेना चाहिए। गेंद किस पाले में जाएगी वह समय पर तय करेंगे। अभी मूर्ख मणिताज का सवाल है।
इधर दूसरी तरफ महामूर्ख चिंतामणि ने अपने बखान शुरू कर दिए -
हमने पहले ही कहा था शनि की महादशा है , आज राहु ने अपना घर बदल लिया है , शनि भारी है उथलपुथल मची रहेगी। मन को शांत रखें , लाल वस्त्र धारण करें , लाल
ही खाएं , लाली लगाएं , लाल पिए और लाल हो जाएँ।
दिन में दो बार स्नान करें फिर जलपान करें , पडोसी को जल देना बंद करे इससे आपके घर में जल संचय होगा , फिर उसे बाँटना। मंगल भड़क सकता है ; सूर्य पश्चिम में घूमने गएँ है ; चंद्र आपको दर्शन देंगे , आज ताज को सर पर धारण रखें शीघ्र परीक्षा का निकाल होगा। आज खेल आर या पार होगा। हम
ही जीतेंगे। ऐसी उच्च कोटि के विचार छोटे से दिमाग में समां ही नहीं
रहे थे।
हमने जिज्ञासा वश प्रश्न उछाल दिया - प्रभु आगे का संक्षिप्त में हाल बताएं - ताज किसे मिलेगा या नहीं।
उत्तर मिला - अभी फिल्म जारी है ; आप अपना ध्यान केंद्रित करें ,
यह मंत्र पढ़ने से आप जल्दी मूर्ख बनने की प्रक्रिया पूर्ण करेंगे और आपको जल्दी ही मोती जड़ित शिरोमणि से नवाजा जायेगा।
ओम मूर्ख मुर्खस्वः, तस्सः मुखर मुरेनियम
मूर्खो देवस्वः धी महि. दियो मोह न मूर्खो दयाः
मूर्ख देव जयते। मूर्ख: मूर्खो : स्वाहा
शशि पुरवार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-04-2019) को "बेचारा मत बनाओ" (चर्चा अंक-3308) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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