आखिर
कब तक दर्द सहेंगी
क्यों मरती रहेंगी बेटियाँ
अपराधों के बढते साए
पन्नों सी बिखरती बेटियाँ
क्यों मरती रहेंगी बेटियाँ
अपराधों के बढते साए
पन्नों सी बिखरती बेटियाँ
कौन
बचाएगा बेटी को
भेड़ियों
और खूंखार से
नराधर्म
की उग्र क्रूरता
दरिंदों
और हत्यारों से
भोग
वासना,
मन
के कीड़े
कैंसर
का उपचार करो
जो
नारी की अस्मत लुटे
वह
रावण संहार करो
दूजों
की कुंठा का प्रतिफल
आपद
से गुजरती बेटियाँ
आखिर
कब तक दर्द सहेंगी
क्यों
मरती रहेंगी बेटियां
अदालतों
में लंबित होती
तारीखों
पर सुनवाई
दोषी
मांगे दया याचिका
लड़े
जीवन से तरुणाई
आज
प्रकृति न्याय मांगती
सुरक्षा,
अहम
सवाल है
तत्व
समाज व देश के लिए
बर्बरता,
जन्य
दीवाल है
खौफनाक
आँखों में मंजर
पर, भय से सिहरती बेटियाँ
आखिर कब तक दर्द सहेंगी
क्यों मरती रहेंगी बेटियाँ
पर, भय से सिहरती बेटियाँ
आखिर कब तक दर्द सहेंगी
क्यों मरती रहेंगी बेटियाँ
लावारिस
सडकों पर भटके
मिली
न मुझको मानवता
कायरता
के शिविर लगे है
अपराधों
का फंदा कसता
चुप्पी
तोडो,
शोर मचाओ
निज
तूफानों को आने दो
दोषी
का सर कलम करो
स्वर
कोलाहल बन जाने दो
भय
मुक्त आकाश बनाओ
हिरनों
सी विचरती बेटियाँ
आखिर
कब तक दर्द सहेंगी
क्यों मरती रहेंगी बेटियाँ
क्यों मरती रहेंगी बेटियाँ
अपराधों
के बढते साए
पन्नों सी बिखरती बेटियाँ
पन्नों सी बिखरती बेटियाँ
शशि
पुरवार
आखिर कब तक ।।।।।
ReplyDeleteजब तक असल दर्द सियासतदारों को न होगा तब तक
ReplyDeleteन कोई कठोर कानून बनेगा न ही उचित व्यवस्था होगी।
बढ़िया, मार्मिक रचना।
बहुत सही।
ReplyDeleteसमाज को सोच बदलनी होगी अब।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
08/03/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
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धन्यवाद
सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन आदरणीया दीदी.
ReplyDeleteसादर
बहुत मार्मिक चित्रण
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