Sunday, November 15, 2015

फेसबुकी दीपावली



 फेसबुकी दीपावली –
       फेक का अंग्रेजी अर्थ है धोखा व फेस याने चेहरादुनिया में आभाषी दुनिया का चमकता यह चेहरा एक मृगतृष्णा के समान है जो आज सभी को प्यारा मोहित कर चुका हैनित्य समाचार की तरह सुपरफास्ट खबरे यहाँ मिलती रहती है.कहीं हँसी के ठहाकेकहीं आत्ममुग्ध तस्वीरेंकहीं प्रेमकहीं शब्दों की बंदूकेंहर तरफ एक बड़े मौल का एहसासजैसे आज दुनियाँ हमारे पास हैसाथ हैजैसे दुनियाँ बस एक मुट्ठी में समां गयी है.
            देश में कुछ समय पहले सफाई अभियान शुरू किया गया थानेता जी की वाणी का ओज और झाड़ू का बोझदोनों का  करिश्मा ऐसा था कि देखने वाले भी हक्के बक्के हो गएवायरस की तरह कचरा अभियान की बीमारी ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया थाअब जिसे देखो वह अपनी तस्वीर और झाड़ू के साथ हर जगह मौजूद थाभले की वहां कचरा न फैला होकिन्तु झाड़ू को सफ़ेद झक्क पोशाधारक के साथ तस्वीरों में तबज्जो मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआकुछ लोगों ने स्वयं कचरा वहाँ फैलाया और सफाई अभियान का श्री गणेश कियाएक दिन ऐसे ही हमारे एक मित्र जिन्हें अंतर्जाल का रोग अभी तक नहीं लगा थाउन्हें जब हमने पूरे सम्मान के साथ इन तस्वीरों को दिखाया और उसकी महिमा का गुणगान कियाबेचारे हमारे सामने हाथ जोड़कर खड़े गए – बोले प्रभु हमें भी दूध मलाई का आनंद लेने दोयह पकवान देखकर हमारी भी नियत बिगड़ रही है.
           हमें हमारी काबलियत पर बड़ा गुरुर हुआखैर सबकी मनोकामना पूरी हो जाये और हमें भी कुछ पुण्य कमाने का मौका मिया हैअहो भाग्य हमारे इसे कैसे छोड़ सकते हैंआत्मशांति का कुछ प्रसाद मिल जाये तो कालजे में ठंडक पड़ेजब सफाई अभियान प्रारंभ हुआ तो फेसबुक भला इससे पृथक कहाँ हैदीपावली में लक्ष्मी के आगमन के पूर्व साफ़ सफाई की जाती हैघर को सजाया जाता हैकुछ लोगों द्वारा दीपावली की सफाई अभियान की तस्वीरें लोड की गयींतो बहुतेरे नींद से जागेदीपावली आ गयी अब तो जैसे सफाई की प्रतियोगिता प्रारंभ हो गयीहर किसी में होड़ लगी हुई थीकिस तरह उम्दा चमकती सफाई करके सितारे की भांति खुद को भी चमका लिया जायेभाई कचरा अभियान को जब मिडिया ने इतनी तवज्जो दी है तो फिर यह दीपवाली हैइसकी तुलना हम कैसे कर सकते हैं.
                सफाई का हर हर किसी के घर में देखने को मिलाअचानक घर में उठे तूफ़ान को शांति की सास समझ ही नहीं सकी कि क्या हुआरोज बहु को बिस्तर तोड़ने और मोबाइल मोड़ने से फुर्सत नहीं मिलती थीआज अचानक कौन सा चमत्कार हुआ कि बहुरानी झाड़ू लेकर नजर आ रही हैबेचारी शांति की सास को जैसे लकवा मार गयाहाय राम न जाने बहु के पीछे कोई भूत प्रेत न लग गया होखैर दिन भर शांति ने झाड़ू अभियान के साथसाथ तस्वीर अभियान भी शुरू कियाशाम को पति देव घर आये तो सास और पति के साथ विजयी तस्वीर ली गयी और अन्तत उसे विजेता घोषित करते हुएअपने फेसबुकी घर की वाल पर टांग दिया गया .. हजारो लाइकऔर अनंत टिप्पणीबधाई सन्देशका असर ऐसा हुआ कि लोगों ने शांति की सास को घर पर जाकर कुशल समझदार बहु मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआकहकर सम्मानित कियाफिर तो जाओ हो आभाषी संसार की इतनी अच्छी पाठशाला और कहीं नहीं हो सकती है..
             जगमगाते रिश्तेबिगडती बातेंकहीं बम के हथगोलेकहीं चमकती रंगीनियाँऐसी शानदार दीपावली दुनिया की एक ही छत की नीचे होती हैसफाई अभियान प्रारंभ है तो मित्रो का अभियान कैसे पीछे रह सकता हैदोस्तों को अमित्र करने का अभियान भी प्रारंभ हो चुका थाअनेक शब्द बम और फुलझड़ियों द्वारा मित्रों को अमित्र करने की प्यारी प्यारी चकरीऔर रोकेट छोड़े जा चुके थेनयी नयी लस्सी और मिठाई का रोज रोज आनंद लेने का  चस्का लोगों को ऐसा लगा कि जब तक पटाखे न छोड़े तब तक दीपावली कैसीअजी यहाँ महिला मित्र हो या पुरुष मित्रमनुहार की ऐसी बंदूके व मिठाई के अनार फूटते ही रहते हैंखैर यह तो है दिवाली का सफाई अभियान जो घर घर से लेकर फेसबुक तक कायम है,
            एक प्रश्न दिमाग में बिगड़े बल्ब की तरह बार बार बंद चालू हो रहा हैबम दिमाग में जैसे फटने को उतावले हो रहे थेक्या कभी किसी ने सोचा कि हम धरती के साथ साथ अम्बर में भी कितना कचरा जमा कर रहें हैआज धरती कचरे के बोझ तले मर रही हैनए नए गृह की खोज करने में नित्य मानव स्पेस में कचरा फेंकता हैचाहे यह अंतरजालफेसबुक हो या  ट्विटरआखिर इसका कचरा सेटेलाइट में इतना ज्यादा जमा हो रहा हैउसे कैसे साफ़ करेंगे ?ध्वनि प्रदुषणवायु प्रदुषण., खाद्य प्रदुषण.......वगैरह न जाने दुनिया में न जाने प्रदूषित कचरे के अनगिनत  ढेर लग चुके हैयह कचरा कौन सी ओज वाणी साफ़ करेगीयहाँ दीपावली कब मनाएंगेइस धरती को कब सजायेंगे. ----- यह फिरकी तेजी से हर जगह घर के दिमाग घूमे और अपना असर दिखाएजय हिन्द.      
                      ----------शशि पुरवार .


--

Friday, November 13, 2015

दिवाली का दिवाला ....

  

            दीपावली का त्यौहार आने से पहले ही बाजार में रौनक और जगमगाहट अपने पूरे शबाब में थी रौशनी नजरों को चकाचौंध कर  रही थीलक्ष्मी पूजन की तैयारीघर में लक्ष्मी का आगमनहर्षौल्लास से मनाया जाता हैंबाजार की रौनक में दीपावली की खरीदारी जोर शोर से शुरू थीजहाँ देखों त्योहारों पर जैसे लूट होने लगी हैलक्ष्मी – गणेश का पूजन है तो,  भगवान के भाव हमारे  तुच्छ प्राणी ने बढ़ा दिए.  अजी ऐसे मौके फिर कहाँ मिलते है, कलयुग है हर कोई अपनी दुकान सजा कर बैठा है. लूटने  का  मौका  लूटो।   दिल के भर को सँभालते हुए हमने भी कुछ खरीदने का मन बनाया, सोचा कुछ तो लेना होगा,   तो सामने से आते हुए पुराने मित्र रमेश चन्द्र के नजरें चार हो गयीहमसे नजरे मिलाते ही उन्होंने जोर से पीठ पर धौल जमाकर अपना कर्तव्य पूरा कर दिया.क्या ख़रीदा बबलू दीपावली पर खाली हाथ , कुछ लिए नहीं काहे अकेले हो घर में  ?

           क्या रमेश अजी अब बुढ़ापा आ गया बबलू  काहे कहते हो भाई यहाँ महंगाई में हमारा पपलू सीधा कर दिया है। और क्या पीठ में दर्द का बम रख कर दिवाली का तोहफा दिया। 

        क्या करे हमारे देश में प्यार मोहब्बत जताने का यही तरीका अपनाया जाता है। हा हा क्या बात है हाथ खाली क्यों घूम रहे हो. कंजूसी न करो ,  माल वाल खर्च करो.

         क्या करे , राम जाने  अब दीपावली जैसे दिवाला निकाल देती है। पहले दीपावली की बात  और थीनए कपडेगहने मिठाईयां सभी लेकर  आते थेलक्ष्मी जी की पूजा करते थे तब लक्ष्मी जी वरदान बनकर घर में प्रवेश करती थीआज कलयुग है समय ने पलटवार किया है कि  लक्ष्मी जी तो  को घर बुलाने के लिए काफी मेहनत मस्सकत करनी पड़ती है।  आम आदमी अब स्वप्न में ही उनसे मिल सकता है.
सत्य कहते हो बबलूपहले ५०० रुपय बहुत होते थेपूरी दिवाली की तैयारी हो जाती थी.  घर भर का आनंद ख़रीदा जा सकता थाकिन्तु अब रूपये का टूटना और डालर का बढ़नादेश में महंगाई नाम की डायन को सदा मंदिर में स्थापित कर चुका है.

             हाँ भाई रमेश चन्द्र -- गरीब की कुटिया और गरीब हो गयीअमीरों के घर चाँद आकार बस गयाबेचारे मध्यमवर्गीय त्रिशंखू की भांति हवा में झूलने लगे हैं.पहले दीपावली में धन के नाम पर सोना ख़रीदे रहे,अब वह भी आसमान की  सैर करता हैघर प्रापर्टी हाथ से बाहर है ,ले देकर दीपावली के नाम पर रस्सी और फुलझड़ी से ही काम चला लेते हैं.

            हाँ सही है बबलूदिवाली में क्या खाए क्या जलायेसाहूकारों के मुँह फटें की फटे रहते  हैंजैसे पूरा पर्वत निगलकर भी भूखे शेर के जैसे  मुँह खोलकर बैठे हुए हैआज लम्पट लोगों ने भी नयी प्रथा को जन्म दे दिया है. जब भी कोई त्यौहार आये, उस त्यौहार में उपयोग होने वाली सभी वस्तुओं के दाम बढ़ा हो और एक ही नारे का टेप बजाओ --- महंगाई  डसती  जाए रे। 

      पहले की तरह अडोस – पड़ोस को बुलानामिठाई खिलानाठहाकों के पटाखेखुशियों की

 फुलझड़ियाँ
रिश्तों की मिठासप्रेम की लड़ियों का अपना ही आनंद  था,  

        हाँ , सत्य वचन भाई , आज तो झूठे मुँह दिखावे के लिए भी कोई नहीं कहत आओ अतिथि न आ जाये।
      आजकल अतिथि दूर हो जाये ऐसा जाप लोग मन ही मन करते हैंकौन इतनी मान मनुहार करता है।  
    हाँ वह तो है , लो छोडो कल की बातें यह बात है पुरानी .......... कहकर रमेशचन्द्र ने अपनी गाड़ी बढ़ा

ली।और धीरे से दबी  आवाज में में कह गए कभी घर आना
, समय  न मिले तो........ फ़ोन ही कर लेना।, राम राम 
            
        आजकल हर कोई उल्लू बनाने में लगा हुआ  है.  दोस्त अपना हो या न हो अपना न हो यादें तो

 अपनी  है
, चलो आज १५० के पटाखे ले ही लेते हैं, यह  लक्ष्मी जी कभी  तो अपनी कुटिया में आ

 ही जाएँगी। आज ईश्वर की कृपा से रिज़र्व बैंक को कुछ भेद  ज्ञान प्राप्त हुआ है
, इसके चलते कुछ ब्याज

 दर कम हुई है
, भाई हमारे नेता जी की जय हो, दीवाली में खुशिओं की बौझार भी हो जाये तो कुछ बम हम

  भी चला ले।  कब तक पड़ोस के बम देखते रहेंगे। दिवाली में दिवाला न निकले। हरी ओम। 
                               -- शशि पुरवार 














Saturday, November 7, 2015

झिलमिलाती है दिवाली






दीप खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती  है दिवाली
तम घना मन से मिटाकर, जगमगाती  है दिवाली

फर्श रंगोली सजी है, द्वार बंदनबार झूलें
भीत पर लड़ियाँ चमकतीं, झिलमिलाती है दिवाली

मुल्क से अपने सभी घर, लौट कर आने लगे है 
फासले होने लगे कम, दिल मिलाती है दिवाली

मग्न है सब खेलने में, ताश, बूढ़े और बच्चे
मिल ठहाकों के पटाखे, खिलखिलाती है दिवाली

झोपडी में एक दीपक रोज जलता हौसलों का
पेट भर भोजन मिला जो, मुस्कुराती है दिवाली

एक साया  ढूंढता है ,अधजले से कागजों में
काश मिल जाये फटाका, मन लुभाती है दिवाली.

फिर अमावश रात काली, खो गयी है रौशनी में
सत्य का जगमग उजेरा, गीत गाती है दिवाली.

              -- शशि पुरवार

आप सभी ब्लॉगर परिवार और मित्रों को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ 

Monday, November 2, 2015

आसमान से उतरे सितारे -- राजनीती की धरा पर


     

       सिने जगत एक ऐसा आसमान है, जहाँ  अनगिनत सितारे चमकते रहते है और ऐसे सितारे जिनकी चमक  कभी  धूमिल नहीं  होती है . दुनियाँ  की आँखों को चकाचौंध भरी रौशनी से चुंधियाता  हुआ रुपहला पर्दा, यहाँ हम बात कर रहे है उन  सदाबहार अभिनेत्रियों की जिन्होंने न केवल रुपहले पर्दे पर किरदारो को जिया है बल्कि वे किरदार आज भी लोगो के दिलों पर  जीवंत राज करते  है, वक़्त तो अपनी गति से  बढ़ता चला  गया परन्तु जैसे इन सितारो  का वक़्त वहीँ ठहर गया है. आज भी  इन सदाबहार अभिनेत्रियों के  चाहने  वालों की कमी नहीं है. आज भी इनके हुस्न की चर्चा होती है, कुछ अभिनेत्रियों ने रुपहले परदे के  अलावा राजनीति के गलियारें में भी कदम रखे, तो लोगो का हुजूम ऐसा  उमड़ा  कि  जैसे सितारे ने आसमान से जमीं पर कदम रखें हों. लोगों ने इन सितारों  का स्वागत भीगे हुए स्नेहिल मन से  किया।  रुपहले परदे की कई अदाकारा जिन्होंने कला के साथ साथ राजनीति में भी अपना भाग्य आजमाया है , क्या लोगों ने उन्हें एक राजनीतिक के रूप में स्वीकार किया है है या आज भी वह एक  अभिनेत्रियों के  रूप में भी पहचानी जाती है।  एक राजनीतीक के रूप में वह कितनी सफल हुई  इस पर एक नजर डालते है …… बॉलीबुड की कई चर्चित अभिनेत्रिया जैसे हिंदी सिनेमा से नरगीस, रेखा, जया प्रदा ,हेमामालिनी,  जया  बच्चन, गुलपनाग दक्षिण की जयललिता , नगमा, बंगाल से मुनमुन सेन, अर्पिता घोष ,शताब्दी राय, संध्या राय, उड़ीसा से अपराजिता भवन्ति ……… आदि  कई अभिनेत्रियों ने राजनीति  में  अपना भाग्य आजमाया है। आईये एक नजर डालते है  उन अभिनेत्रयों के  फिल्मों से राजनीतिक सफ़र तक और किसने कहाँ तक यह सफ़र जारी रखा है।

  फ़िल्मी सफ़र से राजनितिक सफ़र पर एक नजर ---
सबसे पहले बात करते है दक्षिण की जानीमानी अदाकारा जय जयललिता जी की, जो न सिर्फ रुपहले पर्दे पर सफल रहीं है  बल्कि एक राजनितिक के रूप में भी कामयाबी ने उनका दामन थामे रखा है . लोगों ने इन्हें वही प्यार दिया जो एक अभिनेत्री  को दिया था। 
२४ फरवरी १९४८ को जन्मी जयललिता के सर से उनके पिता का साया महज २ वर्ष की उम्र मे मिट गया था, बेहद गरीबी और अभावों में पली जयललिता ने परिवार  चलाने के लिए  १५  वर्ष की उम्र में सिनेमा का रुख किया और जाने माने निर्देशक श्रीधर की फ़िल्म " वेन्नीरादई " से अपना कॅरिअर शुरू किया फिर तमिल, हिंदी और तेलगु की  लगभग ३०० फिल्मों में काम किया। गोल चेहरा, बड़ी आंखें और आकर्षक अंदाज वाली इस अभिनेत्री ने २० साल तक लोगों के दिलों में पर एक हीरोइन के रूप में राज किया 
 अपने सफलता के इसी अंदाज  को उन्होंने राजनीति में भी बरकरार  रखा है. सपनों की  परिभाषा बदल कर सपनों को नए रंगो से सरोबार कर दिया। 
  राजनीति  में " अम्मा " के नाम से  मशहूर जयललिता को  पार्टी के अंदर और सरकार में रहते हुए मुश्किल  कठोर फैसलों के  कारण तमिलनाडू में " आइरन लेडी " और तमिल की  "मार्ग्रेट थ्रेचर "भी कहा जाता है. सन १९८२ में  पूर्व साथी  अभिनेता और नेता एम्. जी. रामचंद्रन ही  जयललिता को राजनीति में लाए, उसी साल वह ए.आई.ए.डी.एम.के. के टिकट पर राज्यसभा  के लिए मनोनीत की गईं. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। हालाकि १९८७ में उन्हें पार्टी के प्रोपोगेंडा  सचिव के पद से हटा दिया गया था। आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी से  तमिलनाडु में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं जयललिता  ने 1991 से 1996 के बीच, फिर कुछ वक्‍त 2001 में और उसके बाद 2002 से 2006 के बीच मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला  हैं। समर्थकों के लिए वह अम्मा भी हैं और क्रांतिकारी नेता (पुरात्ची थलाइवी) भी।
  
           सन १९९१ में राजीव गांधी की हत्या के बाद  जयललिता ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, जिसका उन्हें फायदा पहुंचा. लोगों के मन में डीएमके के प्रति जबरदस्त गुस्सा था क्योंकि लोग उसे लिट्टे का समर्थक समझते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता ने लिट्टे पर पाबंदी लगाने का अनुरोध किया, जिसे केंद्र सरकार ने मान लिया. हालांकि  वह हिंदूवादी समझी जाती हैं लेकिन उन्होंने शिव सेना और बीजेपी की कार सेवा के खिलाफ बोला.   2001 में वह दोबारा सत्ता में आईं तब उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगा दी. हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगा दी, राशन की दुकानों में चावल की कीमत बढ़ा दी, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज कर दिए, बस किराया बढ़ा दिया और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा दी.लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद उन्होंने पशुबलि की अनुमति दे दी थी  और फिर किसानों की मुफ्त बिजली भी बहाल हो गई.  कई कठोर  फैसले लिए  जिसके कारन आलोचना का सामना भी करना पड़ा फिर उन्होने पुराने फैसलों से सीख लेते हुए पार्टी को बिखरने नहीं दिया…… उन्हें अपनी आलोचना बिल्कुल पसंद नहीं है, इसी  वजह से उन्होंने कई अखबारों के ख़िलाफ़ मानहानि के मुक़दमे दायर  कर रखें हैं। खैर बात यह नहीं कि क्या हुआ ? मुख्य बात यह है कि जयलिता ने सिनेमा और  राजनीती दोनों  में सफलता के नए मापदंड स्थापित किये है और  लोगों ने जयललिता के दोनों किरदारों  को बेहद पसंद किया व जयललिता आज भी लोगों के दिलो में राज करतीं है।

ऐसी ही एक अभिनेत्री जया भादुडी  बच्चन -
सन ९ अप्रैल १९४८ को मध्यप्रदेश के जबलपुर में बंगाली परिवार में जन्मी जया   भादुडी ने  महज १५ वर्ष की उम्र में अपने  फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत सन  १९६३ में बंगाली फ़िल्म महानगर से की थी , फ़िल्मी दुनिया में जब उन्होंने कदम रखा तब शर्मीला टैगोर और हेममनीलिनी का जादू  लोगो पर चढ़ा हुआ था, ऐसे में सीधी सादी मासूम सी लड़की का सफल और स्थापित होना लोगों को नामुमकिन लगता था, परन्तु यही सादगी लोगो के दिलो में बस गयी।  आम लड़की के रूप में  किरदारों जिया है. लोगों को  उनमे अपने ही  पड़ोस की लड़की नजर आती थी। प्रतिभा और बेजोड़ अभिनय की धनी जया ने अपने बेहतरीन अभिनय द्वारा फ़िल्म जगत को  अनगिनत यादगार फिल्में दीं है और परदे पर हर किरदार को जीवंत  कर दिया, गुड्डी के नाम से मशहूर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री जया को उनके सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए अनेकों फिल्मफेयर पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेयर पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार , लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कारो से नवाजा जा चुका है. सन ३ जून १९७३ को मशहूर अभिनेता अभिताभ बच्चन से उनकी शादी संपन्न हुई और  वे जय बच्चन बनी। उनका फ़िल्मी सफ़र कभी भी समाप्त हुआ, आज भी वें यदा कदा  बेहतरीब फिल्मों में अपने अभिनय का जादू  बिखेरतीं है।  उन्होंने अपनी एक विशिष्ठ पहचान स्थापित की है।  जया बच्चन को वर्ष २००४ में  राज्यसभा के सदस्य के तौर पर चयनित किया गया था. तब जया बच्चन उत्तर प्रदेश फ़िल्म डेवलपमेंट कॉउसिल के अध्यक्ष के तौर पर अन्य सेवाएं भी दे रहीं थी।  कांग्रेस के भारत के राष्ट्रपति ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा था जिससे उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो सका था। वर्ष १९९२ ने जया बच्चन को भारत सरकार द्वारा  पद्म श्री प्रदान किया गया और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा  यश भर्ती सम्मान से नवाजा गया। आज भी जया बच्चन अपना विशिष्ठ स्थान बनायें हुएँ है।
 इस कड़ी में नाम जुड़ता है बला की  खूबसूरत अभिनेत्री रेखा का। ....
     रेखा का असली नाम  भानुरेखा गणेशन है।  सन १० ओक्टुबर १९५४ को जन्मी प्रतिभाशाली अभिनेत्री रेखा का जन्म चेन्नई में हुआ था. एक बाल कलाकार के रूप में रेखा ने १५ वर्ष की उम्र से तेलगु फ़िल्म रंगुला रत्नम से फिल्मजगत में कदम रखा था, लेकिन हिंदी सिनेमा में उनकी प्रविष्टि फ़िल्म सावन भादो से हुई,  फिर रेखा ने पलट कर नहीं देखा, अपने ४० साल के फिल्मी करिअर में उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं है। १८० से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी यह  सांवली रंग की  खूबसूरत अदाकारा अपने बेजोड़ अभिनय ,सदाबहार हुस्न और जीवंत किरदारों के कारण आज भी लोगों के दिलों पर  राज करती है, अभिनय तो जैसे इनकी रगों में बसा हुआ है, फ़िल्म जगत को कई यादगार फिल्में देने वाली रेखा का हुस्न और सौंदर्य आज भी कशिश भरा है. यह सौंदर्य लोगो के लिए  रहस्य बना हुआ है , उमराव जान का किरदार व कई गानें तो लगता है जैसे रेखा के लिए ही लिखे गए थे।  इन आँखों की मस्ती के….......  सच ने दीवानें आज भी हैं। रेखा का फ़िल्मी सफ़र कभी समाप्त नहीं हुआ अपितु कम हुआ है।  उनकी उपस्थिति आज भी दर्शको को  बॉक्स ओफ़िस तक खींच लाती है।  रेखा जितनी अपने सौंदर्य को लेकर चर्चित रही है उतनी ही कई बार अपने साथी अभिनेता से अपने अफैयर को लेकर भी चर्चित हुई है. कभी विनोद मेहरा , कभी विश्व्जीत तो कभी अमिताभ बच्चन जिनके साथ इनका नाम सबसे ज्यादा जुड़ा, तो कभी अपने  पति मुकेश गौस्वामी की  आत्महत्या के कारन चर्चा में आयीं, परन्तु रेखा का सौंदर्य और अभिनय सदैव सर्वोपरि  रहा है , हर किरदारों को  परदे पर जीवंत करने वाली रेखा को  उनके अभिनय के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्रदान किया गया है।
 सरकार ने रेखा के शानदार अभिनय और फिल्मजगत में उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें राज्यसभा के तौर  पर मनोनीत किया गया ,१५ मई २०१२ को रेखा ने राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली थी। सांसद रेखा रिटेल में एफडीआई के पक्ष में नहीं थी। वह एफडीआई के पक्ष में वोट भी नहीं करना चाहती थी। सरकार ने रेखा को पटाने के लिए उनकी एक मांग पूरी कर दी और आखिरी मौके पर रेखा ने सरकार के पक्ष में वोट भी डाल दिया। एक समाचार पत्र के मुताबिक रेखा दिल्ली में मन मुताबिक आवास सुविधा नहीं मिलने से नाराज थीं। वे राजनीती में सक्रीय है पर रेखा आज भी लोगों के दिलो में एक अभिनेत्री के रूप में राज करती है।
 एक और खूबसूरत अदकारा, हर उम्र के लोगो की ड्रीम गर्ल हेमामालिनी जिन्होंने साइन जगत से अपने कदम राजनीति की धरती पर रखें है - १६ ओक्टुबर १९४८ को अम्मनकुडी में जन्मी हेमामालिनी को दर्शक ड्रीम गर्ल  के नाम से जानते है , हर उम्र के लोगों  की ड्रीम गर्ल  कही जाने वाली हेमामालिनी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के साथ- साथ प्रसिद्ध नृत्यांगना भी है , यह उन गिनी चुनी सदाबहार अभिनेत्रयो में से है जिनमें  सौंदर्य , अभिनय और ग्लैमर का अनूठा संगम है, अपने फ़िल्मी सफ़र की  शुरुआत में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। तमिल निर्देशक श्रीधर ने तो यहाँ  तक कह दिया था कि इनमे स्टार  अपील नहीं है, कई संघर्षो के बाद  उन्हें राजकपूर की फ़िल्म सपनों के सौदागर में बतौर नायिका काम मिला , जिसमे उन्हें ड्रीम गर्ल कह कर प्रचारित किया गया था, फ़िल्म तो नहीं चली पर उनका सौंदर्य लोगों के दिलो में जगह बनाने में कामयाब रहा।  सन १९७० की फ़िल्म जानी मेरा नाम से उन्हें सफलता हासिल हुई , करीब १५० से ज्यादा फिल्मो में काम कर चुकी हेमामालिनी  आज भी ड्रीम गर्ल कहा जाता है .  उनका सौंदर्य और अभिनय आज भी लोगो को परदे पर आकर्षित करता है।  कई फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजी जा चुकी हेमामालिनी ने समाजसेवा कार्य हेतु राजनीति  में प्रवेश लिया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से  राज्यसभा सदस्य बनी हेमा मालिनी को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1999 में फिल्मफेयर का लाइफटाइम एचीश्री सम्मान से भी सम्मानित की गईं। हेमामालिनी आज भी फ़िल्म और राजनीति  में सक्रियता बनाये हुए है.
अब हम बात करते है बुद्धिजीवी  कही जाने वाली बेहतरीन आदाकारा शबाना आजमी की -- शबाना आजमी जितनी बड़ी सशक्त अभिनेत्री है वह उतनी ही अच्छी व सशक्त समाजकर्ता भी है.  शोषित समाज के लिए तो वह मुखर  आवाज बनी हुईं है । मशहूर शायर कैफी आजमी की बेटी  शबाना आजमी का जन्म १८ सितम्बर १९५० हुआ था, प्रखर बुद्धि की शबाना आजमी कभी फिल्मों में आना नहीं चाहती थी, शुरू से ही प्रोग्रेसिव विचारो, परम्पराओ एव मान्यताओं से जुडी शबाना आजमी का   झुकाव अभिनय  की   तरफ नहीं  था , लेकिन फ़िल्म सुमन में जया बच्चन की एक्टिंग से प्रभावित होकर शबाना आजमी ने फ़िल्म एक्टिंग और टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में दाखिला ले लिया।  सन  १९७३ को डिप्लोमा पूरा करके वापिस लौटी तो मरहूम ख्वाजा अहमद अल्बास ने उन्हें अपनी फ़िल्म  फासला के लिए  साइन कर लिया।  शबाना आजमी को पेड़ों के इर्द गिर्द घूमना पसंद नहीं था। उनकी फिल्में आम फिल्मों से अधिक सशक्त विषय पर आधारित होती थी.  बेजोड़ शानदार अभिनय के बतौर उन्होंने अर्थ ,स्पर्श , पार……  आदि अनगिनत फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। फिल्मो में जिस तरह उन्होंने आम आदमी का दर्द प्रस्तुत किया, उसी तरह असल जीवन में भी वे आम आदमी के दर्द से जुड़कर उनकी आवाज बनी।  उन्होंने एक सफल सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में भी अपनी  पहचान बनायीं है।  जावेद अख्तर के साथ उन्होंने शादी की।  उनके बेजोड़ अभिनय के लिए कई नेशनल अवार्ड  से से सम्मानित किया गया , शबाना आजमी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया है. एक सामजिक कार्यकर्त्ता के तौर  पर भी शबाना आजमी एक सफल शक्शियत  बन कर उभरी है। दोनों किरदार फिल्म व राजनिति मे  शबाना आजमी एक सफल नाम है।

इसी कड़ी में आगे नाम जुड़ा अभिनेत्री  जयाप्रदा का ---
जया प्रदा  एक सफल अभिनेत्री और सफल राजनितीज्ञ के रूप में जानी जाती है . ३ अप्रैल १९६२ में जन्मी जयाप्रदा का असली नाम ललिता रानी है ,आंध्र प्रदेश के राममंड्री में जन्मी जयाप्रदा ने बचपन से ही नृत्य और संगीत में दक्षता हासिल कर ली  थी . स्कूल के वार्षिक  समारोह में १४ वर्ष की जयाप्रदा ने नृत्य प्रस्तुति दी थी।,तब वहाँ तमिल के एक निर्देशक भी मौजूद थे। जिन्होंने बाद में जयाप्रदा को अपनी तमिल  फ़िल्म भूमिकोसम  में ३ मिनिट का नृत्य करने के लिए कहा था।  उनके परिवार ने उन्हें प्रोत्साहित किया और इस तरह उन्होंने फिल्मों में अपने कदम रखे।  ३ मिनिट के उनके नृत्य को देखकर उनके पास अनगिनत फिल्मों के प्रस्ताव बाढ़ की तरह आने लगे। उनके नृत्य कौशल के बल पर उन्होंने बहुत जल्दी तमिल में फ़िल्मी सफलता हासिल कर ली , उनकी  फ़िल्म के बालचंदर की अंतुलेनी कथा जबरजस्त हिट  हुई।  उन्होंने तेलगु  के  अलावा तमिल, मलयालम और कन्नड़ फिल्मो में भी अभिनय किया एवं  सभी जगह सफलता के नए मुकाम स्थापित किये . जब   के. विश्वनाथ की  फ़िल्म सिरी सिरी  मुब्बा को हिंदी में सरगम नाम से बनाया गया था,  तब  इस फ़िल्म से सफलता के झंडे  गाड़ दिए थे। अपने ३० वर्षीय फ़िल्मी केरियर में उन्होंने ३००  से ज्यादा फिल्में की है। इस तरह हिंदी फिल्मों में भी उनका पदार्पण हुआ. अनगिनत पुरस्कारो से नवाजा गया है। उन्हें  सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ कला अभिनेत्री  के अलावा उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट  पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.  कुछ अन्य कई पुरस्कार जैसे  राजीव गांधी पुरस्कार , नर्गिस दत्त पुरस्कार , शकुंतला कला रत्नम पुरस्कार , उत्तम कुमार पुरस्कार , उत्तम लेखन पुरस्कार , ANR उपलब्धि पुरस्कार , किन्नेर सावित्री पुरस्कार , कला सरस्वती पुरस्कार …… समेत अनगिनत पुरस्कारो से उन्हें नवाजा गया है। सन १९८६ में श्रीकांत नहाटा से उन्होंने शादी की जो पहले से शादी शुदा थे। जितनी सफल वे फिल्मो में हुई उतनी ही राजनिति  में भी  सफलतापूर्वक पहचान स्थापित करके  सक्रीय है जयाप्रदा के राजनितिक  जीवन पर नजर डालें तो कई रोचक तथ्य भी मिलते हैं . फ़िल्मी कॅरिअर के चरम पर पहुचने के बाद जयाप्रदा ने अपने साथी अभिनेता   एन टी रामाराव  की पार्टी से १९९४ में तेलगुदेसम पार्टी से अपना राजनीतिक सफ़र शुरू किया।  एन टी रामाराव का स्वास्थ ख़राब होने पर चन्द्र बाबू नायडू को आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और उसी दौरान जयाप्रदा  राज्यसभा के लिए नामित हुई थी। सन १९९६ में जयाप्रदा तेलगु की महिला अध्यक्ष बनी।  बाद में उन्होंने तेपेदा छोड़ दिया और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गयी। सन २००४ के आम चुनाव में उन्होंने रामपुर से संसदीय चुनाव लड़ा व ८५ हजार वोटो से जीती।  पांच साल तक सांसद रहने के बाद पुनः चुनाव लड़ा और ३०,००० से  ज्यादा वोटो के अंतर पर विजयी रही।  आज भी जयाप्रदा राजनिति  में उतनी ही शिद्दत से कार्यरत है  और सफल है। 
अब बात करतें है उस युवा अभिनेत्री की जिसने कम उम्र में सफलता के कई आयाम स्थापित किये हैं।   यहाँ हम बात कर रहे हैं बॉलीबुड , टोलीवुड और कॉलीवुड की  सफलतम अभिनेत्री नगमा की जिनका वास्तविक नाम है नंदिता मोरारजी या नम्रता सदाना, जिनका  जन्म २५ दिसम्बर १९७४ को हुआ।
 मुसलमान माँ  और हिन्दू पिता की  संतान नगमा  सभी धर्मो का सम्मान करती है. अपनी मिश्रित धार्मिक प्रवर्ति के कारन उन्होंने  कुरान , भगवतगीता , बाइबल सभी का अध्यन किया है। सन  १९९० में १६ साल की  उम्र में उन्होंने अभिनेता सलमान खान के साथ बागी नाम की  सफलतम हिंदी फ़िल्म से फ़िल्म जगत में अपनी जोरदार एंट्री की थी । हिंदी , तेलगु , तमिल ,कन्नड़ , मलयालम , भोजपुरी , बंगाली , भोजपुरी , पंजाबी और मराठी सभी फिल्मो में उल्लेखनीय कार्य किया।  तमिल में  प्रसंशको ने  तो उनका एक मंदिर ही बना दिया और भोजपुरी सिनेमा में तो वह भोजपुरी फिल्मो की माधुरी दीक्षित कही जाती है। सन २००५ में भोजपुरी फ़िल्म दूल्हा मिलाल दिलदार  के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ।   अप्रैल  २००४ में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए आँध्रप्रदेश में प्रचार किया था , कांग्रेस पार्टी की समर्थक नगमा को भाजपा ने लुभाने की बहुत कोशिश  की, परन्तु वे कांग्रेस पार्टी की स्टार प्रचारक थी।   धर्मनिरपेक्षता , कमजोर  और गरीब वर्ग के उद्धार के लिए प्रतिबध्द नगमा को सन  २००७ में राज्य सभा  सीट के लिए  नामित किया गया था।   राजीव गांधी   की प्रशंसक होने के कारण उन्होंने कोंग्रेस को ही प्रमुख रखा, नगमा एक राजनीतियज्ञ और अभिनेत्री के तौर पर सफल एवं सक्रीय भूमिका में है।
इसी तरह कई अभिनेत्रिया है जो सिने  परदे से निकलकर राजनीति की दुनिया में आयी है। आगे बात करते है बंगाली और हिंदी की  सफल अभिनेत्री और बंगाल की महान अदाकारा सुचित्रा की बेटी  मुनमुन  सेन की, जो भारतीय सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्री रही है। २८ मार्च १९४८ को कोलकत्ता में   जन्मी मुनमुन सेन ने हिंदी के अलावा भी बंगला तमिल और मराठी फिल्मों में भी काम किया है कला के अलावा मुनमुन सेन को सामजिक कार्यो में भी रूचि थी, यही कारण है कि उन्होंने शादी से पहले ही एक बच्चे को गोद ले लिया था। अपने बोल्ड और   सेक्सी अंदाज के लिए मशहूर रही मुनमुन सेन एक सफल अभिनेत्री के  तौर पर कभी स्थापित नहीं हो सकी थी।  सन २०१४ में पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा लोकसभा सीट से तृणमूल की उमीदवार के तौर पर उन्होंने अपना टिकिट दाखिल किया है। चूँकि यह महान बंगाली अदाकारा की बेटी हैं  तो इसी वजह से राज्य की जनता से उन्हें बहुत स्नेह मिलता है। उन्होंने यह उम्मीद जतायी है कि यदि उन्हें जनसमर्थन प्राप्त होता है तो इस नए किरदार में वह लोगों के दुःख दर्द को जानने का मौका मिलेगा और वह उनके लिए कुछ अच्छा करना चाहेंगी।

      इस तरह  ५   ओक्टुबर १९६९ को जन्मी बंगला अभिनेत्री, निर्देशक , और डाइरेक्टर  शताब्दी राय ने भी तृणमूल कोंग्रेस से ही राजनीती में अपने कदम बढ़ाएं है  और सफलता पूर्वक राजनीति में सक्रीय है , इसी कड़ी बंगाल के रंगमंच की कलाकार अर्पित घोष भी राजनीति में अपनी सक्रियता बनाये हुए है। बंगाल का एक और नाम अभिनेत्री  संध्या राय ने तृणमूल कांग्रस से अपना  मार्च २०१४ में नामांकन दाखिल किया था.

 हाल ही में बॉलीबुड की जानी मानी मॉडल एवं अभिनेत्री गुलपनाग जिनका जन्म ३ जनवरी १९७९ को हुआ है, उन्होंने भी राजनीति की  तरफ रुख किया है। गुलपनाग पूर्व में मिस इंडिया रह चुकी है। शानदार, सशक्त अभिनय करने  वाली गुलपनाग चित्रपट के मामले में बहुत चूजी रही है ,इन्हे क्रिटिक्स चॉइस सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ है।  गुलपनाग अभिनय के साथ साथ सामजिक कार्यो से जुडी हुई थी। गुलपनाग भ्रष्टाचार ,वंशवाद और अपराधी राजनीति के आंदोलनो में सक्रिय  रही है, इन्होने १४ मार्च २०१४ को आप पार्टी के नामांकन  दाखिल किया था  यह भी सबसे कम उम्र की अभिनेत्री है। जिन्होंने राजनीति में अपने कदम बढ़ाये है।
    यह सफ़र तो यहीं ख़त्म नहीं होता, किन्तु सभी अभिनेत्रियां , एक अभिनेत्री के रूप में सभी के दिलों पर  राज कर रही है किन्तु हम तो यही चाहेंगे कि यह सभी चमकते सितारे राजनीति के गलियारो को सकारात्मक ऊर्जा और नयी रौशनी से रौशन कर दे।  यहाँ भी उसी चमक के साथ लोगो के दिलो पर राज करें और समाज में में अपने महत्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान प्रदान कर सकें। शुभकामनाओ सहित।
-------- शशि पुरवार 


Thursday, October 22, 2015

रामभरोसे राम के भरोसे

इस साल दशहरा मैदान पर रावण जलाने की तैयारियां बड़े जोर शोर से की जा रहीं थी. पहले तो कई दिनों तक रामलीला होती थी फिर रावण दहन किया जाता था. अब काहे की राम लीला काहे का रावण, अब तो बस जगंल में मंगल है. राम भरोसे के भरोसे सारा रावण दहन हो जाता है. राम भरोसे नाम की ही नहीं काम का भी राम भरोसे है. पंडाल का काम हो या जनता की सेवा राम भरोसे के बिना पत्ता नहीं हिलता है. हर बार जेबें गर्म, मुख में पान का बीड़ा रहता था किन्तु इस बार जैसे उसके माई बाप आपस में गुथम गुथम कर रहें हैं.  बड़े बेमन  से वह रावण दहन के कार्य में हिस्सा ले रहे थे. मित्र सेवक राम से रहा नहीं गया बोले – भाई इतने ठन्डे क्यूँ हो क्या हुआ है .
अब का कहे देश में रावण राज्य ही चल रहा है. जिसे देखों, जब देखो हर पल गुटर गूं करते रहते हैं.
क्यूँ, भाई क्या हुआ.
अब पहले जैस बात कहाँ है, यह दशहरा पर मैदान बड़ा गुलजार रहता था, रामायण के पात्र समाज को अच्छा सन्देश देते थे. राम हजारो में थे तो रावण एक, कलयुग में राम ढूँढने से भी नहीं मिलते हैं. सबरे के सबरे रावण है. कल तक रामभरोसे थे अब सारा दूध पी लिया और रामभरोसे को राम के भरोसे ही छोड़ दिया.
हाँ भाई सच कहत हो, देखो राम जी तो चले गए लेकिन आज के रावण राम मंदिर के नाम पर आज भी अयोध्या जलाते हैं.
और नहीं तो का, जनता की कौन सोचत है  सभी अपना अपना चूल्हा जलाते है और अपनी अपनी रोटी सेकतें हैं. धुआं तो जनता की आँखों में धोका जात है.
इतने वर्ष हो गए हमने कोई जात पात नहीं मानी, सभी  धर्म के लिए ईमानदारी से काम किया, किन्तु अब कोई हमें पानी भी नहीं पिलाता है. आजकल काहे का रावण काहे की माफ़ी, प्रदुषण पर बैन है, तो जाने दो मन का रावण जला दे वही बहुत है.  ऐसे कलयुगी रावण का क्या किया जाये, गॉंव में काँव काँव शुरू रहती है..... शहर में धम्म धम्मा धम्म, ऐसी मौज मस्ती जैसे अपने घर के बगीचे में टहल रहें है और घर के बर्तन बाहर जाकर नगाड़ा बजाते है. ई दशहरा भी कोई राजनीती होगी. सब धर्म के नाम फरमान जारी होंगे, कुछ लाला अपना कन्धा सकेंगे. थोड़े बर्तन बजायेंगे और डाक्टर नयी फ़ौज को जमा करने  के लिए तैयार रहेंगे, लो जी हो गया दशहरा. फिर से राम ही रावण बनकर आपस में लड़ रहे हैं. तो जीतने वाला भी रावण ही होगा. बस हाल होगा तो बेचारे राम भरोसे का, जो राम के भरोसे ही पेट की आग शांत करने का प्रयास करता है और अब वह न घर का रहा है न घाट का. अब कलयुग है तो कलयुग के राम सूट बूट वाले है. वह अपनी सेना को नहीं खुद को ही ज्यादा देखते हैं. त्रेता युग में जो हो गया सो हो गया, आज वह के राम बने रावण वनवास जाते नही है, विभीषण को भेज देते हैं. आखिर वही ततो आया था उनके पास भोजन मांगने.

      अब कोई त्यौहार पहले जैसा नहीं रहा, घर में बैठकर दो चार घंटे टीवी देख लो. अभाशी दुनिया घूम लो, ट्विटर से जबाब तलब कर लो, हो गया दशहरा. फिर काहे इतना पैसा एक रावण को जलाने में लगायें, लाखो लोगों के पेट भर खाना खिला दे तो पुन्य तो मिलेगा, इस देश में न जाने कितने विभीषण अभी भी है जो त्रेता युग के राम भरोसे ही अपना धर्म निभा रहें हैं.
  शशि पुरवार



Monday, October 19, 2015

फेसबुकी फ़ेसलीला


फेसबूकी फेसलीला  

पुनः चलते है फेसबुक की हसीन वादियों में, मैंने आपसे वादा किया था, आपको फेसबुक की गलियों में जरुर घुमाएंगे. हर रंग की तरह यहाँ भी अनेक रंग बिखरे हुए हैं, अजी तीज त्यौहार तो निकल गए यहाँ के त्यौहार समाप्त ही नहीं होते है,  जैसे जैसे  दशहरा पास आ रहा है यहाँ की गलियां राम नाम से सरोवर है. भारी- भरकम शब्दों के साथ राम का गुणगान, शबरी के बेर, रावण का दहन हमें त्रेतायुग के दर्शन करा देता है, सारी रामलीला इस आभाषी दुनिया में सिमट जाती है, किन्तु यहाँ की रामलीला जैसी रामलीला कहीं नहीं होती है.
       कौन कहता है त्रेता युग मिट गया, किन्तु वह तो भारी भरकम शब्दों का श्रृंगार करके यहाँ  जीवित है.  लोग अपना ज्ञान भरी भरी शब्दों को ढूंढकर, सजाकर वजन में प्रस्तुत कर रहें हैं. किन्तु फिर भी यह कलयुग है जहाँ सब कुछ संभव है, एक तरफ राम नाम दूसरी तरफ राम के भेष में रावण.  चित्रपट के बदलते रंगों की तरह यहाँ हर पल रंग बदलती मृगतृष्णा है.
        रामलीला का अर्थ भी यहाँ बदल कर कलयुगी फेसलीला हो गया है. हाल ही समाचार पत्रों में पढ़ा कि कई महिलाये इस आभाषी दुनिया के रावण के झांसे में आकर घर छोड़कर चली गयीं. और जल्दी ही सुबुद्धि खाकर,  सुबह का भूला शाम को भटक कर घर  वापिस आ गया.  यह नयी रामलीला के तोते समझ से परे हैं. कलयुग में राम कहाँ रावण से भरी रामलीला है. यहाँ न सीता का अपहरण किया जाता है अपितु कई सीता खुद बा खुद काल का ग्रास बनने को तैयार है. अब कौन समझाए यह त्रेता युग नहीं कलयुग है भाई, यहाँ तो रोज रावण जन्म लेते हैं रोज ब्लोक किये होते है, चुनावी हार हो या राजनीती हार, इसके बाद का  वनवास निश्चित होता है. किन्तु फिर नयी सुबह  नयी नयी राजनीती को गरमाने के लिए तैयार रहती है. यहाँ कौन राजा है कौन रैंक ज्ञात ही नहीं होता है, सिर्फ नयी चमक, नयी कहानी रोज गरमाती है, कहीं सुबकियाँ कहीं आजादी अपने रंग दिखाती है. संवाद के तीर हो या त्योहारों की आवाजाही, चार कमरे की दीवारों से खुली छोटी सी खिड़की के बाहर दुनियाँ की रंगीनियाँ छिपी हुई है. इस कलयुग में इस रंग के बिना जीवन बेरंग हैं.छद्म भेष में यहाँ रोज रावण मिलेंगे, हमारे एक महान कहे जाने वाले सीधे साधे इंसान ऐसे राम बनते हैं, कि बिना उनकी सीता के वह कुछ नहीं वहीँ दूसरी तरफ छिछोरी हरकतें, इसे क्या कहेंगे. बेहतर है यहाँ शब्द वाणों से किसी और को आहत करने की जगह खुद के भीतर का रावण दहन किया जाये.. जय श्री राम .
 ---- शशि पुरवार

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

http://sapne-shashi.blogspot.com