बाबुल के अँगना खिला, भ्रात बहन का प्यार
भैया तुमसे भी जुड़ा, है मेरा संसार।
माँ आँगन की धूप है, पिता नेह की छाँव
भैया बरगद से बने , यही प्रेम का गॉँव
सुख की मंगलकामना, बहन करें हर बार
पाक दिलों को जोड़ता, इक रेशम का तार
चाहे कितने दूर हो, फिर भी दिल से पास
राखी पर रहती सदा, भ्रात मिलन की आस
प्रेम डोर अनमोल ये, जलें ख़ुशी के दीप
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप
-- शशि पुरवार
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 25 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकच्चे धागों में भाई-बहिन का अटूट प्यार छुपा रहता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर
ReplyDeletechhandatmak prastuti....ati uttam
ReplyDeleteअद्भुत । अप्रतिम । बेमिसाल । वाह वाह रचना ।
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