बार  - बार  मुस्कुरा   रहा  है 
 इशारो   से   वह  बुला  रहा   है 
 कितना अच्छा   लग  रहा  है ,
 उसकी  ये   अदाएं  तो 
सबके  मन  पर  छा  जाएँ 
 उसकी  वो  प्यार   भरी  नजरे 
 उसका  खिलखिला  कर  हँसना
 ये  अदाएं  तो  दिल   में  बस  जाएँ ....
वह  तो  चिंता से  परे   खड़ा है  ,
 कौन  है  वह ..?  कौन  है ....?
     नहीं  - नहीं .....
 ये  वह   नहीं ..
 यह   और   कोई  नहीं   ,  वही   है ....
 वही  है   ये  तो  ..... वही   है ........!
  यही  तो  है  मेरा   बचपन  
  अलविदा   बचपन   " अलविदा   "
                                                  :-  शशि  पुरवार
यह  कविता  समाचार  पत्रों  और  पत्रिकाओ  में  प्रकाशित  हो  चुकी  है . 

बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शब्द और उतनी ही खूबसूरत कविता.....बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग और खासकर आपकी कविता पढके..
ReplyDeleteसंजय जी ,
ReplyDeleteआपका बहुत- बहुत धन्यवाद .
आपने बहुत खूबसूरती से बचपन को प्रकट किया है अपनी कविता मे ... ऐसे ही लिखती रहे इंतजार रहेगा , शुभकामनाए
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