Wednesday, September 26, 2012

कैसा संहार .?


निति नियमो को
ताक  पर रखकर 
संरक्षक बना है भक्षक
ये कैसी हार 

नोच लिए रूह के तार
भेड़िया बन खींची है खाल
थमा के मीठी गोली
खेली है खूनी होली
टूट गयी विश्वास की डोर
बिखरा है लहु चारो ओर 
अपने जिय के टुकड़ों का 
 ये कैसा संहार

टूट रही लज्जा की गागर 
फट रहा जिय का सागर
कैसे छुपाये नाजुक काया
पीछे पड़ा  है एक  साया
बीच बाजार बिकती साख
भेद रही गिद्ध  की आंख
खतरा फैला है  चहुँ और 
सफेदपोश है निशाचर 
ये कैसा आधार  

निति नियमो  को
ताक पे रखकर हुआ 
ये  कैसा व्यवहार.
---शशि पुरवार  


11 comments:

  1. इसे समझते सोचते उम्र गुजर जाती है...

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  2. मार्मिक, पता नहीं कैसे लोग इतना गिर जाते हैं।

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  3. आज यही हो रहा है ... अफसोसजनक घटनाएँ .... मार्मिक प्रस्तुति

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    1. shukriya sangeeta ji , rashmi ji , praveen ji abhar aap sabhi ka , sahi kaha aapne yah behad dardnaak hai , jo nigaho ne dekha padha wah dil ko ghayal kar gaya .

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  4. We have shunned all morals and see what we have become. A though provoking read.

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    Replies
    1. thanks saru , its very worth side of our community .

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  5. MERE SABHI MITRAO KA SADAR ABHAR ...SABHI KI SAMIKSHA MERE LIYE ANMOL HAI , SABHI KE SHABDO KO BLOG PAR SAHEJ DIYA HAI MAINE .
    Ashutosh Chauhan shandar..........
    14 hours ago · Unlike · 1
    #
    Shashi Purwar shukriya ashutosh ji
    14 hours ago · Like
    #
    Nisha Kothari waaah dil ko jhakjhorti hui sundar rachna par badhai Shashi Purwar ji !!!
    14 hours ago · Unlike · 1
    #
    Narendra Sharma kadwa sach kaha hai aapne, badi khuddari ke saath ...wah wah !
    14 hours ago · Unlike · 1
    #
    Ramesh Pant इस गहन चिँतन और सार्थक रचना के लिये बहुत बहुत बधाई।
    13 hours ago via mobile · Like
    #
    Hadi Javed टूट रही लज्जा की गागर
    फट रहा जिय का सागर
    कैसे छुपाये नाजुक काया
    पीछे पड़ा है एक साया
    बीच बाजार बिकती साख
    भेद रही गिद्ध की आंख
    खतरा फैला है चहुँ और
    सफेदपोश है
    निशाचर .
    हर्दय्स्पर्शी रचना बहुत खूब
    13 hours ago · Unlike · 1
    #
    कवि राज बुन्दॆली निति नियमो को
    ताक पे रखकर
    संरक्षक बना भक्षक
    ये कैसी हार

    नोच लिए रूह के तार
    भेड़िया बन खिंची खाल
    थमा के मीठी गोली
    खेली है खुनी होली
    टूट गयी विश्वास की डोर
    बिखरा है लहु चारो ओर
    अपने जिय के टुकडो का
    कैसा संहार,,,,,वाह शशि जी क्या कमाल के भाव दिये है आपने रचना को बहुत बहुत बधाई,,,,,,,,,
    13 hours ago · Unlike · 1
    #
    Rajesh Kummar Sinha टूट रही लज्जा की गागर
    फट रहा जिय का सागर
    कैसे छुपाये नाजुक काया
    पीछे पड़ा है एक साया----SHASHI JI AIK GAMBHIR AUR SARTHAK KAVITA BADHAII
    12 hours ago · Unlike · 1
    #
    Sia Kumar आज के समाज की परिस्थितयों का सुन्दर और सजीव चित्रण करने का प्रयास किया है आपने Shashi Purwar जी सादर वन्दे।..
    12 hours ago · Unlike · 1
    #
    Dk Nagaich Roshan Samaaj me panaptee buraaiyo'n par ek kuthaaraaghaat kiya hai aur samaaj ko aainaa dikhaane ka kaam is rachna ke zariye kiya hai aapne ... sunder rachna ke liye bahut badhayee Shashi Purwar ji..
    12 hours ago · Unlike · 1
    #
    Bala Shashi Singh gambhir mudde par aapki rachana ke liye badhai..........
    11 hours ago · Unlike · 1
    #
    Sandhya Singh निति नियमो को
    तक पे रखकर
    हुआ ये कैसा
    व्यवहार.....बहुत सुन्दर
    11 hours ago · Unlike · 1
    #
    Surendar Nawal वाह क्या बात है शशि जी... सादर वन्दे...
    10 hours ago · Unlike · 1
    #
    Yogesh Sarwad bahut sundar
    9 hours ago · Unlike · 1

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  6. शशि जी बेहद मार्मिक रचना है आपने बेहद सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है.

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  7. सोचने पर मजबूर करती/ दिल को छू जाने वाली/ मार्मिक रचना /

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  8. उफ़ ..पूरी रचना में दर्द..

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