आतंकी तारीखे बनी
अमावस की काली रात
कैद हुए मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.
अमावस की काली रात
कैद हुए मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.
ताबूत बने थे वे दिन ,
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़ रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़ रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.
उत्तरकाल के गुलशन की
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नूतन वर्ष पर दीवारों के
पंचांग अब बदल रहे .
शशि पुरवार पंचांग अब बदल रहे .
जो बीत गया वो अच्छा नहीं था...
ReplyDeleteआने वाला वक्त उजास लाये यही आशा है..
सुन्दर कविता शशि...
सस्नेह
अनु
हम आशा करतें हैं की नववर्ष सभी के लिए खुशियाँ और नई आशाएं लाये और जगाये ! इस सुन्दर कविता के लिए निश्चय ही आप बधाई की पात्र हैं !
ReplyDeleteयह आक्रोश एक दिशा दे जायेगा..
ReplyDeleteआने वाले वक्त के दुआ ही कर सकते हैं कि वो सबके लिए अच्छा ही आए
ReplyDeleteआमीन!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना!
युवा क्रांति के क़दम दृढ़ता से आगे बढ़ें..... यही प्रार्थना व उम्मीद है .....
`सादर!
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
युवा क्रान्ति ही अब कुछ कर सकती है इस देश समाज में ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
बहुत सुंदर युवा क्रान्ति को दिशा देती बेहतरीन प्रस्तुति,,,
ReplyDeleterecent post: मातृभूमि,
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता |शशि जी नमस्ते |
ReplyDeleteजल्द ही पंचाग बदले, सोच बदले और व्यवस्था बदले यही उम्मीद है...
ReplyDeleteअच्छी रचना...
तथास्तु
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
उत्तरकाल के गुलशन की
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नूतन वर्ष पर दीवारों के
पंचांग अब बदल रहे .
बहुत सुंदर भाव-संयोजन !
आदरणीया शशि पुरवार जी
सर्व मंगल की आशाएं फलीभूत हों
सुंदर कविता के लिए आभार!
गणतंत्र दिवस की अग्रिम बधाई और मंगलकामनाएं …
... और शुभकामनाएं आने वाले सभी उत्सवों-पर्वों के लिए !!
:)
राजेन्द्र स्वर्णकार
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kash naya warsh... nayee khushiyan laye.....
ReplyDeletebahut behtareen rachna..
वाह दी वाह !!
ReplyDeleteसार्थक कविता है।
ReplyDelete- शून्य आकांक्षी
आशा जिजीविषा को जीवित रखती है।
ReplyDeleteअच्छा संदेश।
शुभकामनाएं।
bahut sundar avm aasha ki shakti se bhrpoor rachana bahut prbhavshali lagi .....abhar shashi ji .
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना है | इस आक्रोश के पीछे कुछ तो जल रहा है ?
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