अनछुए से रंग
रंगों का त्यौहार
लागे
सबको प्यारा
कहीं रंग कहीं बेरंग
यह कैसा इशारा .
अनछुए से चले गए
रंग जीवन से
जब
मांग में सोई गमी।
हरी मेंहदी
करतल पर दहने लगी ,
फिर
खनकती हंसी
काल कोठरी में पली
और
विरह की आग से खेलते
शृंगारो की खूब होली जली ।
हिय के दलदल में
दफ़न हो गए
हरे पीले लाल रंग ,
श्वेत रंग वन में जगे,
रंगों का कोई दोष नहीं
दिलकश होते है रंग
क्या लिखा है नियति ने ?
किसे दोष दे ....... ?
हर बार की तरह
मौसम
तो बदलेंगे
वृक्ष तो छाया ही देंगे
पर
सूखें वनों को चाहिए
सिर्फ
प्रेम की फुहार।.
फागुन तो
आता है हर साल
भर
स्नेह की पिचकारी
लगाओ गुलाल।
15.03.13
-- शशि पुरवार
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सूखें वनों को चाहिए
ReplyDeleteसिर्फ
प्रेम की फुहार।. sahi bat......
सबको भाये रंग की होली..
ReplyDeleteसुन्दर कविता..
रंगों की फुहार भाए होली का त्यौहार,,,
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
बहुत खूब! होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
होली मुबारक
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
ReplyDeleteले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है
सच है प्रेम की फुहार किसी में फर्क क्यों करे ...
ReplyDeleteसबको होली की सतरंगी उपहार की जरूरत है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!