माहिया - बदली ना बरसी
१
धरती भी तपती है
बदली ना बरसी
वो छिन छिन मरती है .
२
सपनो में रंग भरो
नैना सजल हुये
जितने भी जतन करो।
२
यह चंदा मेरा है
ज्यूँ सूरज निकला
लाली ने आ घेरा है।
३
माँ जैसी बन जाऊं
छाया हूँ उनकी
कद तक पहुच न पाऊं।
४
सब भूल रहे बतियाँ
समय नहीं मिलता
कैसे बीती रतियाँ
५
फिर डाली ने पहने
रंग भरे नाजुक
ये फूलो के गहने .
६
डाली डाली महकी
भौरों की गुंजन
क्यों चिड़िया ना चहकी।
--------- शशि पुरवार
१/१० / २०१३
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धरा का हर कण तरसता, बूँद आती,
ReplyDeleteकाश बादल की सरसता बरस जाती।
४
ReplyDeleteसब भूल रहे बतियाँ
समय नहीं मिलता
कैसे बीती रतियाँ
५
फिर डाली ने पहने
रंग भरे नाजुक
ये फूलो के गहने .
६
डाली डाली महकी
भौरों की गुंजन
क्यों चिड़िया ना चहकी
सुन्दर गहन अर्थों से सजी माहिया लिखने में आपका जबाब नहीं |आभार
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : पलाश के फूल
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : पलाश के फूल
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर माहिया .........
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