कुछ पलों का घना अँधेरा है
रैन के बाद ही सवेरा है.
जग नजाकत भरी अदा देखे
रात्रि में चाँद का बसेरा है.
हर नियत पाक दिल नहीं होती
जाल सठ का बुना घनेरा है.
रंज जीवन नहीं रजा ढूंढो
हर कदम हर्ष का फुलेरा है.
इश्क है हर नदी को सागर से
इल्म है जोग भी निबेरा है.
मै मसीहा नहीं मुसाफिर हूँ
मुफलिसी ने मुझे ठठेरा है.
जिंदगी इम्तिहान लेती है
वक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
- शशि पुरवाररात्रि में चाँद का बसेरा है.
हर नियत पाक दिल नहीं होती
जाल सठ का बुना घनेरा है.
रंज जीवन नहीं रजा ढूंढो
हर कदम हर्ष का फुलेरा है.
इश्क है हर नदी को सागर से
इल्म है जोग भी निबेरा है.
मै मसीहा नहीं मुसाफिर हूँ
मुफलिसी ने मुझे ठठेरा है.
जिंदगी इम्तिहान लेती है
वक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
बहुत ही सुन्दर शेर हैं ग़ज़ल के ... लाजवाब ...
ReplyDeleteवाह क्या बात है ।
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (26-01-2015) को "गणतन्त्र पर्व" (चर्चा-1870) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जिंदगी इम्तिहान लेती है
ReplyDeleteवक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeleteजिंदगी इम्तिहान लेती है
ReplyDeleteवक़्त सबसे बड़ा लुटेरा है।
खूबसूरत अशआरों के साथ लिखी गजल
बक्त मात्र लुटेरा ही नही है दाता भी तो है बही तो हमे सब कुछ देता है !
ReplyDeleteआपके सब्द अनमोल है आभार
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