आदमी ने आदमी को चीर डाला है।
चापलूसों का
सदन में बोल बाला है
आदमी ने आदमी
को चीर डाला है
आँख से अँधे
यहाँ पर कान के कच्चे
चीख कर यूँ बोलतें, ज्यों
हों वही सच्चे.
राजगद्दी प्रेम का
चसका निराला है
रोज पकती है यहाँ
षड़यंत्र की खिचड़ी
गेंद पाले में गिरी या
दॉंव से पिछड़ी
वाद का परोसा गया
खट्टा रसाला है
आस खूटें बांधती है
देश की जनता
सत्य की आवाज को
कोई नहीं सुनता
देख अपना स्वार्थ
पगड़ी को उछाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
-- शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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ReplyDeleteसच्चाई को बयान करती, सटीक एवं सामयिक रचना
ReplyDeleteसच बयान करती रचना ... आदमी आदमी का दुश्मन है आज ...
ReplyDeleteबहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-03-2015 को चर्चा मंच की चर्चा गांधारी-सा दर्शन {चर्चा - 1929 } पर दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 26/03/2015 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 44 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
आदमी ने आदमी को चीर डाला है .............
ReplyDeleteसत्य वचन
http://savanxxx.blogspot.in
आदमी ने आदमी को चीर डाला..... सत्य के करीब , बहुत सटीक रचना
ReplyDeleteसत्ता की भूख व भौतिकता की होड़ ने आदमी को आदमी रहने ही नहीं दिया , आदमी ही आदमी का दुश्मन बन गया है , सच्चाई को परखती और बिखेरती सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसटीक और सुन्दर रचना
ReplyDeleteखूब गा-गाकर पढ़ा। आनंद आया।
ReplyDeleteसत्ता पर तीक्ष्ण कटाक्ष । सुंदर रचना।
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