मँहगाई की मार से, खूँ खूँ जी बेहाल
आटा गीला हो गया, नोंचे सर के बाल
नोचे सर के बाल, देख फिर खाली थाली
महँगे चावल दाल, लाल पीली घरवाली
शक्कर, पत्ती, दूध, न होती रोज कमाई
टैक्स भरें धमाल, नृत्य करती महँगाई।
----- शशि पुरवार
----- शशि पुरवार
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नृत्य करती महँगाई . . . बढ़िया
ReplyDeletehttp://hradaypushp.blogspot.in/2015/03/torai.html
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2016) को "नूतन सम्वत्सर आया है" (चर्चा अंक-2307) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चैत्र नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया व्यंग
ReplyDeleteBadhiya kataksh
ReplyDeleteBadhiya kataksh
ReplyDeleteआपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 10/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 268 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
वास्तविक चित्र खींचा है आपने
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत खूब ... मंहगाई पे लिखा मस्त व्यंग ...
ReplyDeleteWaah..bahut badhiya
ReplyDeleteमहँगाई पर सटीक कटाक्ष... बेहतरीन
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