शहर में इंकलाब हो जाए 
गॉँव भी आबताब हो जाए  १ 
लोग जब बंदगी करे दिल  से 
हर नियत मेहराब हो जाए  २ 
हौसले गर बुलंद हो दिल में 
रास्ते कामयाब हो जाए ३  
ज्ञान का दीप भी धरूँ मन में 
जिंदगी फिर गुलाब हो  जाए ४ 
दो कदम साथ तुम चलो मेरे 
हर ख़ुशी बेनकाब हो जाए५ 
कौन रक्षा करे असूलों की 
बद नियत जब जनाब हो जाए ६ 
जुस्तजू है, सृजन करूँ  कैसे
हाल ए दिल शराब हो  जाए ७ 
इक तड़पती गजल लिखूं कोई 
हर पहेली जबाब हो जाए.८ 
पास आये कभी चिलक दिल में 
फिर कहे शशि किताब हो जाए ९ 
शशि पुरवार 
 
 
 
 Posts
Posts
 
 
 
 
दिनांक 17/02/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
बढ़िया।
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-02-2017) को
ReplyDelete"उजड़े चमन को सजा लीजिए" (चर्चा अंक-2595)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत खूब
ReplyDelete