१
छैल छबीली फागुनी, मन मयूर मकरंद
ढोल, मँजीरे, दादरा, बजे ह्रदय में छंद।
ढोल, मँजीरे, दादरा, बजे ह्रदय में छंद।
२
मौसम ने पाती लिखी, उड़ा गुलाबी रंग
पात पात फागुन धरे, उत्सव वाले चंग।
३
फगुनाहट से भर गई, मस्ती भरी उमंग
रोला ठुमरी दादरा, लगे थिरकने अंग।
४
फागुन आयो री सखी, फूलों उडी सुगंध
बौराया मनवा हँसे, नेह सिक्त अनुबंध।
५
मौसम में केसर घुला, मदमाता अनुराग
मस्ती के दिन चार है, फागुन गाये फाग।
६
फागुन में ऐसा लगे, जैसे बरसी आग
अंग अंग शीतल करें, खुशबु वाला बाग़.
७
हरी भरी सी वाटिका, मन चातक हर्षाय
कोयल कूके पेड़ पर, आम सरस ललचाय।
८
सुबह सबेरे वाटिका, गंधो भरी सराय
गर्म गर्म चुस्की भरी, पियें मसाला चाय।
गर्म गर्म चुस्की भरी, पियें मसाला चाय।
९
Sunder rachna....
ReplyDeleteMere blog par aapka swsgat hai...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2603 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
Amazing post keep posting..............and keep visting on https://kahanikikitab.blogspot.in
ReplyDeleteलाज़वाब और समसामयिक दोहे...होली की हार्दिक शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteबहिन शशी पूर्वा आपके फागुनि दोहे बहुत पसंद आये अाने वाली होली पर इन्हे वाटसप पर सैयर करूंगा
ReplyDeleteबहुत बढिया दोहे...
ReplyDelete