बरखा रानी दे रही, अधरों पर मुस्कान
धान बुआई कर रहे, हर्षित भये किसान
हर्षित भये किसान, जगी मन में फिर आशा
पनपता हरित स्वर्ण, पलायन करे निराशा
कहती शशि यह सत्य, हुआ मौसम नूरानी
खिले खेत खलियान, बरसती बरखा रानी
बीड़ी,गुटका,तमाखू ,गांजा, मदिरापान
नष्ट हो गयी जिंदगी, पहुँच गयी शमशान
पहुँच गयी शमशान, फना जीवन की लीला
करा ना कोई काम, नशीला द्रव्य ही लीला
कहती शशि यह सत्य, कर्म में तन मन अटका
पाया तभी मुकाम, नशा है बीड़ी, गुटका
शशि पुरवार
धान बुआई कर रहे, हर्षित भये किसान
हर्षित भये किसान, जगी मन में फिर आशा
पनपता हरित स्वर्ण, पलायन करे निराशा
कहती शशि यह सत्य, हुआ मौसम नूरानी
खिले खेत खलियान, बरसती बरखा रानी
बीड़ी,गुटका,तमाखू ,गांजा, मदिरापान
नष्ट हो गयी जिंदगी, पहुँच गयी शमशान
पहुँच गयी शमशान, फना जीवन की लीला
करा ना कोई काम, नशीला द्रव्य ही लीला
कहती शशि यह सत्य, कर्म में तन मन अटका
पाया तभी मुकाम, नशा है बीड़ी, गुटका
शशि पुरवार
बरखा आयी
ReplyDeleteबहार लायी
बहुत सुन्दर रचना
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एमएलए साहब का राजनैतिक प्यार “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-08-2018) को "बता कहीं दिखा कोई उल्लू" (चर्चा अंक-3061) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक रचना
ReplyDeleteसुंदर रचना।
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