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हिंदी भाषा ने रचा, बंसी जैसा गान
सरल सुगम भव आरती, जीवन का वरदान
जीवन का वरदान, गूँजता मन, चौबारा
शब्द शब्द धनवान, छंद की बहती धारा
अनुपम यह सौगात, सजी माथे पर बिंदी
तजो विदेशी पाल, बसी प्राणों में हिंदी
2
भारत
की धड़कन यही,
वीणा
की झंकार
सुरसंगम हिंदी चली, भवसागर के पार
भवसागर के पार, हृदय मोहित कर दीना
भावों का संसार, इसी ने समृद्ध कीना
अक्षर अक्षर गान, सजा हिंदी से मधुवन
भाषा करती राज, यही भारत की धड़कन
शशि पुरवार सुरसंगम हिंदी चली, भवसागर के पार
भवसागर के पार, हृदय मोहित कर दीना
भावों का संसार, इसी ने समृद्ध कीना
अक्षर अक्षर गान, सजा हिंदी से मधुवन
भाषा करती राज, यही भारत की धड़कन
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-09-2019) को "हिन्दी को वनवास" (चर्चा अंक- 3460) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteNice blog.
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