छैल छबीली फागुनी, मन मयूर मकरंद
ढोल, मँजीरे, दादरा, बजे ह्रदय में छंद। 1
मौसम ने पाती लिखी, उड़ा गुलाबी रंग
पात पात फागुन धरे, उत्सव वाले चंग। 2
फगुनाहट से भर गई, मस्ती भरी उमंग
रोला ठुमरी दादरा, लगे थिरकने अंग। 3
फागुन आयो री सखी, फूलों उडी सुगंध
बौराया मनवा हँसे, नेह सिक्त अनुबंध। 4
मौसम में केसर घुला, मदमाता अनुराग
मस्ती के दिन चार है, फागुन गाये फाग। 5
फागुन में ऐसा लगे, जैसे बरसी आग
अंग अंग शीतल करें, खुशबु वाला बाग़.6
फागुन लेकर आ गया, रंगो की सौगात
रंग बिरंगी वाटिका, भँवरों की बारात7
हरी भरी सी वाटिका, मन चातक हर्षाय
कोयल कूके पेड़ पर, आम सरस ललचाय। 8
सूरज भी चटका रहा, गुलमोहर में आग
भवरों को होने लगा, फूलों से अनुराग 1०
चटक नशीले मन भरे, गुलमोहर में रंग
घने वृक्ष की छाँव में, मनवा मस्त मलंग 1१
धरती भी तपने लगी, अम्बर बरसी आग
आँखों को शीतल लगे, फूलों वाला बाग़ 1२
शशि पुरवार
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteji aapka hardik dhnaywad
Deleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteधरती भी तपने लगी, अम्बर बरसी आग
ReplyDeleteआँखों को शीतल लगे, फूलों वाला बाग़
अत्यंत सुंदर सृजन ।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (०५ -०३ -२०२२ ) को
'मान महफिल में बढ़ाना सीखिए'((चर्चा अंक -४३६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वसंत हुआ जीवंत । बगीचे की सैर हुई । मन हुआ मगन ।
ReplyDeleteषहुत खूब !