आज बुजुर्गों ने जीवन के अंतिम पड़ाव जीना सीख लिया है। आजकल जीने का नया माध्यम उन्हें सोसल मीडिया के रूप में मिला है जहाँ २ शब्द में उन्हें वह आत्मीयता प्रदान करतें हैं जो वास्तविक जीवन में शायद ही मिले।
कुछ दिनों पहले बम्बई का एक किस्सा सुनने में आया कि एक लड़की ने अपनी सगाई इसलिए तोड़ी कि वह परिवार में साथ नहीं रहना चाहती थी , उसने अपने होने वाले भावी पति से पूछा -- " घर में खाली खोके या डस्टबिन कितने है " , पहले तो लड़का समझ नहीं सका, तब लड़की ने कहा कि तुम्हारे माँ बाप है या नहीं। .... !
अब ऐसी सोच को क्या कहे, आजकल तो लड़की के माँ बाप भी यही देखते है कि लड़का अपने घर - परिवार से दूर नौकरी में हो, जिससे बिटिया को पड़े. सास - ससुर का साथ उन्हें बोझ लगता है. परिवार का अर्थ उनके लिए सिर्फ पति ही होता है और बेटे के लिए भी धीरे धीरे माँ - बाप उनकी स्वत्रन्त्र जिंदगी में बाधक। यही आजकल का कड़वा सत्य बन गया है।
अब ऐसी सोच को क्या कहे, आजकल तो लड़की के माँ बाप भी यही देखते है कि लड़का अपने घर - परिवार से दूर नौकरी में हो, जिससे बिटिया को पड़े. सास - ससुर का साथ उन्हें बोझ लगता है. परिवार का अर्थ उनके लिए सिर्फ पति ही होता है और बेटे के लिए भी धीरे धीरे माँ - बाप उनकी स्वत्रन्त्र जिंदगी में बाधक। यही आजकल का कड़वा सत्य बन गया है।
यही वजह है आज देश में जगह जगह वृद्धाश्रम खुल गएँ है, मथुरा के वृद्धाश्रम तो बहुत चर्चित है वहाँ स्कान मंदिर की तरफ से बहुत से वृद्धाश्रम बने हुए है, कई ऐसे है जहाँ सिर्फ महिलाएं रहती है और कुछ जगह महिला पुरुष दोनों ही है, वहाँ के आश्रम में जाकर बुजुर्गो से मिलने का सौभाग्य भी मिला और यथास्थिति जानकार दुःख भी हुआ कि कितने ही परिवार संपन्न होते हुए भी बुजुर्गो को वहाँ जाकर छोड़ देते है। कमोवेश यही हाल देश के अन्य वृद्धा आश्रम का भी है। जो चिंतनीय व निंदनीय भी है।
बुजुर्गो की वास्तविक स्थिति को और जानने के लिए मैंने जळगॉंव स्थित वृद्धाश्रम में भी कुछ पल बिताएं और वहाँ कुछ बुजुर्ग दम्पति की व्यथा सुनकर आँखों के कोर नम हो गए, वहाँ एक - दो बुजुर्ग दम्पति ऐसे भी थे जो अपने जीवन के अंतिम क्षणों को जी रहे थे। जिनका शहर में बहुत बड़ा बंगला एवम करोडो का व्यवसाय था। सिर्फ एक ही पुत्र जिसने करोडो की संपत्ति धोखे से अपने नाम करवा ली फिर उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ दिया, अपनी कहानी सुनाते हुए बिलख कर रोने लगे कि आज ५ साल हो गए है बेटा हमसे मिलने भी कोई नहीं आता, हमने जिस बच्चे की राहों में काँटा भी चुभने नहीं दिया आज वह बच्चे गलती से पलट कर भी नहीं देखते हैं। हमें धन संपत्ति का मोह नहीं है वह खुश रहें तो अब हम यहाँ खुश है, सिर्फ साल भर के लिए २००० रूपए भेज देते है
समय कभी एक जैसा नहीं होता हैं, पहिया घूमता रहता है। वक़्त बदला , युवा बदले और अब बुजुर्गो का खुद के लिए बदलता नजरिया, यह सुखद सकारत्मक पहलू है , आज आश्रम में रह रहे बुजुर्गों ने अपने लिए जीना सीख लिया है। बुजुर्ग अपनी ख़ुशी के लिए कार्य करते है सत्संग से लेकर अपने पसंद के सभी कार्य आपस में मिल जुलकर करते है. आश्रम में जुड़ा हुआ उनका यह परिवार ही उनके दुःख सुख का साथी भी है।
समय कभी एक जैसा नहीं होता हैं, पहिया घूमता रहता है। वक़्त बदला , युवा बदले और अब बुजुर्गो का खुद के लिए बदलता नजरिया, यह सुखद सकारत्मक पहलू है , आज आश्रम में रह रहे बुजुर्गों ने अपने लिए जीना सीख लिया है। बुजुर्ग अपनी ख़ुशी के लिए कार्य करते है सत्संग से लेकर अपने पसंद के सभी कार्य आपस में मिल जुलकर करते है. आश्रम में जुड़ा हुआ उनका यह परिवार ही उनके दुःख सुख का साथी भी है।
वृद्धाश्रम के अतिरिक्त भी कुछ बुजुर्ग महिलाओ से भी मैंने मुलाक़ात की और उनकी सोच एवं हौसलों के आगे मै भी नतमस्तक हो गयी, आज इस उम्र में उनका हौसला किसी युवा से कम नहीं है, अपने इस समय को उन्होंने अपने लिए चुना जो साथ में उनकी जीविका का साधन भी बना। साथ ही समाजसेवा भी हो गयी।
कुछ और लोगों के मिले अनुभव भी आपसे साझा करती हूँ।
७० साल की एक बुजुर्ग महिला हमेशा मुझे उपचार केंद्र के दिखती थी, चेहरे पर आत्मसंतोष की झलक और मोहक मुस्कान , हाथ पैर में सूजन के कारन रोज शाम नियम से सिकाई के लिए आती थी, उनसे पूछा आप रोज अकेले आती है, कोई आपके साथ नहीं आता - तो जबाब में उन्होंने कहा -
हाँ मै अकेले आती हूँ , मेरे पति बीमार है बिस्तर से नहीं उठ सकते है, बेटे बहू बाहर रहते है , उनका अपना घर है , वह यहाँ नहीं आते और हम यहाँ अपने जीवन से खुश है.
हाँ मै अकेले आती हूँ , मेरे पति बीमार है बिस्तर से नहीं उठ सकते है, बेटे बहू बाहर रहते है , उनका अपना घर है , वह यहाँ नहीं आते और हम यहाँ अपने जीवन से खुश है.
" आप क्यूँ नहीं जाती बच्चो के पास "
" क्या करूँ जाकर , इस उम्र में हमसे आना जाना नहीं होता वे अपने जीवन में व्यस्त व खुश है. तो रहने दो, हम भी खुश है"
एक स्निग्ध मुस्कान चैहरे पर आ गयी।
" क्या करूँ जाकर , इस उम्र में हमसे आना जाना नहीं होता वे अपने जीवन में व्यस्त व खुश है. तो रहने दो, हम भी खुश है"
एक स्निग्ध मुस्कान चैहरे पर आ गयी।
वहीँ एक और महिला थी जिनसे पति का वर्ष भर पहले स्वर्गवास हो चूका था। उम्र ६५ साल परन्तु जैसे उन्होंने उम्र को मात दी हैं। हंसमुख ,मधुर स्वभाव - कहने लगी पहले मै बहुत दुखी हुई रोती रहती थी, मुझसे बोलने वाला कोई भी नहीं था, इतनी अकेली हो गयी थी कि बीमार पड़ने लगी, बेटे - बहु अपने कार्य में व्यस्त रहते है , फिर मैंने खुद को समझाया कि जीना पड़ेगा इस तरह जीवन नहीं काट सकतें हैं। तब मैंने विरोध सहकर भी पालना घर शुरू कर दिया, २ पैसे भी मिलने लगे और लोग भी जुड़ने लगे, आज स्वस्थ हूँ , खुश हूँ , ग्रुप बन गया है सत्संग करते है, बच्चों के साथ मिलकर हँस लेते है. आज एकाकी पन नहीं है।
आज बुजुर्गो का अपने प्रति बदलता नजरिया उन्हें जीवन जीने और खुश रहने के लिए सकारात्मक सन्देश व संतुष्टि प्रदान कर रहा है, ऐसे कई बुजुर्ग भी है जिन्होंने कभी कंप्यूटर या मोबाइल को हाथ भी लगाया होगा किन्तु आज वह अंतरजाल पर सफलता पूर्वक सक्रीय है, अंतरजाल पर युवाओं के साथ साथ बुजुर्गो की संख्या भी बढ़ती जा रही है , वहाँ वे अपना योगदान लेखन में भी कर रहे है और जीवन को नए नजरिये से देख रहें है। यह बदलाव सकारात्मक सन्देश भी देता है उम्र जीने की कोई सीमा नहीं होती है। परन्तु क्या बुजुर्गो का नजरिया बदलना ही सम्पूर्णता है ? परिवार और समाज की क्या जिम्मेदारियाँ है ? सिर्फ वृद्धाश्रम ही इसका विकल्प नहीं है. आज कानून ने भी बुजुर्गो के लिए कई प्रावधान बनायें है, जिनका हनन होने पर कार्यवाही की जा सकती है। एक उम्र के बाद जब शरीर थकने लगता है तब सहारा जरुरी है। लेकिन आज के बुजुर्गों ने इससे लड़ना सीख लिया है , उनके जज्बे को नमन।
-- शशि पुरवार
-- शशि पुरवार