चुपचाप हौले से , वाट जोहते है तेरी ,
धीरे से अब तो आ जाओ , खुशियाँ
दामन में मेरी ....!
पेशानी की सलवटो को छुपाते
दर्द की ज्वाला को दिल में दबाते ,
अधरो पे हैं मुस्कान लाते
जीवन के रण में बस ,
कैक्टस को ही गिनते जाते ..!
रूत बदली , बसंत ने ली अंगड़ाई
नवकोपलों पे है, खुमारी छाई .
झरते पत्ते दे रहे पुनरागमन का पैगाम ,
फिर कब ख़त्म होगा सब्र का इन्तिहाँ .
बीतते वक्त के साथ , मद्धम होती रौशनी
जर्जर तन , थकित कदम , सुप्त सा मन .
एक सा लागे सारा मौसम ....बसंत .
ऐसे ही खाली जाम के संग ,
जीवन से रुकसत होते हम .....!
चुपचाप , हौले से वाट जोहते है तेरी ,
अब तो आ जाओ ...खुशियाँ ....
दामन में मेरी .............!
:-- शशि पुरवार
:-- शशि पुरवार
कभी -कभी ऊपर वाला भी सितम करता है ,
भरे हुए जाम को सदैव छलकाता है और जिसका प्याला खाली है उसका खाली ही रह जाता है ....!
थोडा सा जाम यदि खाली प्याले में गिरे तो मन तृप्त हो जाता है ..........पर जिसके जाम गिरते रहते है.... उन्हें कहाँ किसी का दर्द नजर आता है .......!
:----शशि पुरवार.