Tuesday, May 28, 2013
Saturday, May 25, 2013
क्लांत नदिया............
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानु .
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने .
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूंदे.
काली घटाए
सूरज को छुपाये
आँख मिचोली .
:--शशि पुरवार
Tuesday, May 21, 2013
सीना चौड़ा कर रहे .......
दोहा
जीवन बहता नीर सा , राही चलता जाय
बीती रैना कर्म की , फिर पीछे पछताय .
सीना चौड़ा कर रहे , बाँके सभी जवान
देश प्रेम के लिए है , हाजिर अपनी जान .
सीना ताने मै खड़ा , करे धरती पुकार
कतरा आखिर खून का ,तन मन देंगे वार .
कुण्डलियाँ ---
सीना चौड़ा कर रहे ,वीर देश की शान
हर दिल चाहे वर्ग से ,करिए इनका मान
करिए इनका मान , हमें धरती माँ प्यारी
वैरी जाये हार , यह जननी है हमारी
दिल में जोश उमंग ,देश की खातिर जीना
युवा देश की शान ,कर रहे चौड़ा सीना .
-------शशि पुरवार
Sunday, May 19, 2013
इशक गुलमोहर
1
बीहड़ वन
दहकता पलाश
बौराई हवा .
2
तप्त सौन्दर्य
धरती का शृंगार
सुर्ख पलाश
3
जेठ की धूप
हँसे अमलतास
प्रेम के फूल
4
यादों के फूल
खिले गुलमोहर
मन प्रांगन
5
सौम्य सजीले
दुल्हे का रूप धरे
आये पलाश
6
खिली चांदनी
भौरे गान सुनाये
झूमे पलाश
7
तेरे प्यार में
खिला मन पलाश
महका वन .
8
गर्मी है जवाँ
इशक गुलमोहर
फूल भी हँसे .
9
स्वर्ण पलाश
सोने से दमकते
भानु भी हैरां .
10
सजी धरती
हल्दी भी खूब लगी
झूमे पलाश .
-------शशि पुरवार
5.5.13
Wednesday, May 8, 2013
प्यार मेरा सच्चा ......!
1
कितनी प्यारी यादें
आँगन में खेले
वो बचपन की बातें
2
पंछी बन उड़ जाऊं
मै संग तुम्हारे
नया अंबर सजाऊं
3
ये मौसम सर्द हुआ
तुम तो रूठ गए
ये जीवन रीत गया
4
फिर दिल में टीस उठी
सुप्त पड़े रिश्ते
काया भी सुलग उठी
5
खामोश हुई साँसे
होठ थरथराये
आँखों ने की बातें
6
है खेल रही कसमे
पिय संग निभायी
जब वेदी पे रस्में
7
ये अम्बर नीला है
प्यार मेरा सच्चा
इससे भी गहरा है .
------शशि पुरवार
Sunday, May 5, 2013
पावन धरणी राम की ..........!
१ पावन धरणी राम की, जिसपे सबको नाज घूम रहे पापी कई, भेष बदलकर आज भेष बदलकर आज, नार को छेड़ें सारे श्वेत रंग पोशाक, कर्म करते हैं कारे नाम भजो श्री राम, नाम है अति मनभावन होगा सकल निदान, राम की धरणी पावन २ मानव सारे लीन हैं, राम लला की लूट भक्ति भाव के प्रेम में, शबरी को भी छूट शबरी को भी छूट, बेर भी झूठे खाये दुःख का किया विनाश, हृदय में राम समाये रघुपति हैं आदर्श, भक्त हैं प्रभु को प्यारे राम कथा, गुणगान, करें ये मानव सारे ३ रघुपति जन्मे भूमि पे, खास ये त्यौहार राम कथा को फिर मिला, वेदों में विस्तार वेदों में विस्तार, राम की लीला न्यारी कहते वेद पुरान, नदी की महिमा भारी निर्गुण सगुन समान, प्रजा के प्यारे दलपति श्री हरि के अवतार, भूमि पर जन्मे रघुपति ४ सारे वैभव त्याग के, राम गए वनवास सीता माता ने कहा, देव धर्म ही ख़ास देव धर्म ही ख़ास, नहीं सीता सी नारी मिला राम का साथ, सिया तो जनक दुलारी कलयुग के तो राम, जनक को ठोकर मारे होवे धन का मान, अधर्मी हो गए सारे ५ आओ राजा राम फिर, दिल की यही पुकार आज देश में बढ़ गयी, लिंग भेद की मार लिंग भेद की मार, दिलों में रावण जागा कलयुग में तो आज, नार को कहे अभागा अनाचार की मार, राज्य फिर अपना लाओ रावण जाए हार, राम फिर वापिस आओ -- शशि पुरवार २२ अप्रैल २०१३ |
Monday, April 29, 2013
कह दो मन की बातें
1
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
4
पीड़ा फिर क्यों भड़की ?
भाव सभी सोए
खोली दिल की खिड़की ।
5
क्या पाप किया मैंने !
गरल भरा प्याला
हर रोज़ पिया मैंने ।
शशि पुरवार
Friday, April 26, 2013
गेहू के जवारे ...............!
गेंहू -------
Wheat (disambiguation)
गेहूँ लोगो का मुख्य आहार है .खाद्य पदार्थों में गेहूँ का महत्वपूर्ण स्थान है , सभी प्रकार के अनाजो की अपेक्षा गेहूँ में पोष्टिक तत्व अधिक होते है और दैनिक आहार के सब प्रकार के अनाजों में गेहूँ श्रेष्ठ है , इसीलिए गेहूँ को " अनाजों का राजा " माना जाता है .
भारत में सर्वत्र गेहूँ का उत्पादन होता है , विशेषतः पंजाब ,गुजरात और उत्तरी भारत में गेहूँ पर्याप्त मात्रा में होता है , एवं उत्तरी भारत का सर्वमान्य आहार गेहूँ है
वर्षाऋतु में खरीब फसल के रूप में और सर्दी में रबी फसल के रूप में गेहूं बोया जाता है . सिचाई वाले रबी फसल के गेहूँ को अच्छे निथार वाली काली , पीली या बेसर रेतीली जमीन अधिक अनुकूल पड़ती है जबकि बिना सिचाई की वर्षा की फसल के लिए काली और नमी का संग्रह करने वाली चकनी जमीन अनुकूल होती है . सामान्यतः नरम काली जमीन गेहूँ की फसल के लिए अनुकूल होती है .
गेहूँ का पौधा डेढ़ -दो हाथ ऊँचा होता है .उसका तना पोला होता है एवं उस पर ऊमियाँ ( बालियाँ ) लगती है , जिसमे गेहूँ के दाने होते है . गेहूँ की हरी ऊमियों को सेंककर खाया जाता है और सिके हुए बालियों के दाने स्वादिष्ट होते है .
गेहूँ की अनेक किस्में होती है . कठोर गेहूँ और नरम गेहूँ मुख्य है , रंगभेद की दृष्टी गेहूँ के सफ़ेद और लाल दो प्रकार होते है .इसके उपरान्त बाजिया , पूसा , बंसी , पूनमिया , टुकड़ी , दाऊदखानी , जुनागढ़ी , शरबती , सोनारा ,कल्याण , सोना , सोनालिका , १४७ , लोकमान्य , चंदौसी ...आदि गेहूँ की अनेक प्रसिद्ध किस्में है .इन सभी में गुजरात में भाल -प्रदेश के कठोर गेहूँ और मध्य भारत में इंदौर - मालवा के के गेहूँ प्रशंसनीय है .
गेहूँ के आटे से रोटी , सेव , पाव रोटी , ब्रेड ,पूड़ी , केक , बिस्किट , बाटी , बाफला आदि अनेक बानगियाँ बनती है . उपरान्त गेहू के आटे से हलुआ , लपसी , मालपुआ , घेवर ,खाजे , जलेबी वगेरह पकवान भी बनते है .
गेहूँ के पकवानों में घी,शक्कर , गुड़ या शर्करा डाली जाती है .गेहूँ को ५ -६ दिन भिगोकर रखने के बाद उसके सत्व से बादामी पोष्टिक हलुआ बनाया जाता है , गेहूँ का दालिया भी पोष्टिक होता है और इसका उपयोग अशक्त बीमार लोगो को शक्ति प्रदान करने के लिए होता है , गेहूँ के सत्व से पापड़ और कचरिया भी बनायी जाती है .
गेहूँ में चरबी का अंश कम होता है अतः उसके आटे में घी या तेल का मोयन दिया जाता है , और उसकी रोटी चपाती , बाटी के साथ घी या मक्खन का उपयोग होता है .घी के साथ गेहू का आहार करने से वायु प्रकोप दूर होता है और बदहजमी नहीं होती . सामान्यतः गेहू का सेवन बारह मास किया जाता है .
गेहूँ से आटा , मैदा , रवा और थूली तैयार की जाती है . गेहूँ में मधुर , शीतल ,वायु और पित्त को दूर करने वाले गरिष्ठ , कफकारक , वीर्यवर्धक , बलदायक ,स्निग्ध , जीवनीय , पोष्टिक , व्रण के लिए हितकारी , रुचि उत्पन्न करने वाले और स्थिरता लाने वाले विशेष तत्व है .
---------------------------------गेहूँ के जवारे ----------------
आजकल हर्बल ट्रीटमेंट का बोलबाला है . हर जगह हर्बल चिकित्सा व सौन्दर्य उपचार के विज्ञापन देखने को मिलते है . आयुर्वेद से उत्पन्न गेहूँ रस चिकित्सा विधि भी एक ऐसा ही उपचार है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति घर बैठे जी लाभ उठा सकता है .
गेहूँ के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है . यह वह अमृत है जिसमे अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है . अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का मिश्रण हमें सिर्फ गेहू के रस में ही मिल जाता है .
गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व होते है तथा इनके सेवन से शरीर में शक्तिवर्धन होता है इसीलिए इसे हरा खून भी कहा जाता है . डा. विग्मोर ने कई रोगों में गेहूँ के जवारे के रस का सफल उपयोग किया है . उन्होंने कहा था कि गेहूँ के जवारों का रस एक सम्पूर्ण आहार है , केवल इसके रस का सेवन कर मनुष्य अपना पूरा जीवन व्यतीत कर सकता है , जवारे का रस केवल औषधि नहीं है बल्कि कायाकल्प करने वाला अमृत है . डा. विग्मोर के अनुसार अगर कुछ दिनों तक नियमित गेहूँ के रस का प्रयोग किया जाये तो असाध्य बीमारीओं से निजात पाई जा सकती है . जैसे ----
- गेहूँ रस का सेवन करने से कब्ज व्याधि दूर होती है , गैसीय विकार भी दूर होता है .
- गेहूँ रस का सेवन करने से रक्त का शुद्धीकरण भी होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े , फुंसी , चर्मरोग आदि भी दूर होता है . , फूटे हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बांधने से शीघ्र लाभ होता है .
- श्वसन तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दम जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी नियंत्रित हो जाता है .
- गेहू के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और पथरी भी गल जाती है .
- दांत व हड्डियों की मजबूती के कारगर है .
- गेहू के रस से नेत्र विकार दूर होते है और नेत्र ज्योति बढती है .
- गेहू के जवारे के रस का सेवन करने वालों को रक्तचाप व ह्रदय रोग नहीं होते है .
-पेट के कृमि को शरीर से बाहर निकल दिए जाने में यह एक सफल उपचार है .
-मासिक धर्म की अनियमितताए में भी जवारे का रस उपयोगी है और भी अनेक बीमारियां है जिनमे इस रस का प्रयोग उपयोगी सिद्ध हुआ है .
सावधानियां --------------!
जहाँ गेहू का रस हमारे लिए एक कारगर एवं सफल इलाज है वही इसके प्रयोग में कुछ सावधानियां बरतना अत्यंत आवश्यक है .जैसे ...........
-जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें , इसे फ्रिज में रखकर कभी भी इस्तमाल न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है .
-जवारे का सेवन करने से आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद में कुछ न लें वैसे सेवन के लिए प्रातः काल का समय ही उत्तम है .
-रस को धीरे धीरे जायका लेते हुए पीना चाहिए न कि पानी की तरह गटागट करके .
-जब तक आप गेहू के जवारे का सेवन कर रहे हो उस अवधि में सदा व संतुलित भोजन करें , ज्यादा मसालेयुक्त भोजन से परहेज रखे .
-कभी कभी जवारे के रस का सेवन करते ही सर्दी या जुखाम हो जाता है या उलटी दस्त या बुखार आ जाता है मगर इसमें घबराने कि कोई बात नहीं है १ या २ दिन में ही शरीर स्थित सब विकार विसर्जित हो जाते है और व्यक्ति पुनः सामान्य हो जाता है
. इस अवधि में रस का प्रयोग कम करें या पानी मिलकर करें परन्तु बंद न करें , शरीर शुद्ध हो जाने पर इस तरह की परेशानी की रोकथाम हो जाती है .
- यदि आप जवारे के रस बनाने की झंझट से बचना चाहते है तो गेहूं के पौधे का सीधे सेवन भी किया जा सकता है .
गेहूं के पौधे प्राप्त करना अत्यंत आसान है ,अपने घर में ८ -१० गमले अच्छी मिटटी से भर ले इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पर सूर्य का प्रकाश तो रहे पर धूप न पड़े ,साथ ही वह स्थान हवादार भी हो , यदि जगह है तो क्यारी भी बना सकते है .
सबसे पहले न. १ गमले में उत्तम प्रकार के चंद गेहूं के दमे बो दे इसी तरह दूसरे दिन न . २ गमले में , फिर न . ३ गमले में ...आदि . यदा कदा पानी के छीटें भी गमले में मारते रहें जिससे नमी बनी रहे , आठ दिन में दाने अंकुरित होकर ८-१० इंच लम्बे हो जाते है बस उन्हें नीचे से काटकर ( जड़ के पास से ) पानी से धोकर रस बना लें , मिक्सी में भी रस बना सकते है .उसे मिक्सी में पीसकर छानकर रोगी को पिला दे . खाली गमले में पुनः गेहूं के दाने बो दे इस तरह रस को सुबह शाम लिया जा सकता है परन्तु हर शरीर कि अपनी एक तासीर होती है इसीलिए एक बार अपने डाक्टर से सलाह जरूर ले . वैसे इससे कुछ नुकसान तो नहीं है फिर भी सलाह लेना हितकर होता है .
----------------------शशि पुरवार
उम्मीद है दोस्तों आपको पसंद आया होगा , यह अनुभूति अंतरजाल पत्रिका और पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है , आज सोचा ब्लॉग पर कुछ हट कर पोस्ट करू ...आपके अनमोल विचारो से जरूर अवगत कराये।
Wednesday, April 24, 2013
अनुबंध है यह प्रेम का .......शाश्वत
रूह में बसा है एक
शबनमी एःसास
शब्दों से परे,
झिझकती साँसे
कुछ सकुचाई सी
और अधर पर लगे है
लज्जा के ताले!
पलके झुकी झुकी
मुस्काती सी
एक लचीली डाल !
और
बह रहे है सपने
मन के प्रांजल में
पर
न कोई वादा ,न कसमे
बस हाथो को थाम
उँगलियों ने कह दिए
सात वचन!
अनुबंध है यह प्रेम का
अनुरक्त रहे
विश्वास के बीज से!
रिश्ते खेलते है सदैव
दिल और दिमाग
के पत्तो से ,पर
खिलखिलाता है
जीवन का बसंत !
मिलन है यह
आत्मा से आत्मा का
शाश्वत प्रेम का,
सत्य वचन ,बंधन
जन्मो जन्मो का ....!
24.04.13
--------- शशि पुरवार
Monday, April 22, 2013
हर मछली को लील रहा
शांत जल में आया है
कैसा यह भूचाल
हर मछली को लील रहा
जल का नाग आज.
विषधारी हो गये है
मगरमच्छ सारे
शैवालो पर बैठकर
शिकारी डेरा डारे
फँस गयी यहाँ जलपरी
धँस गई आवाज
शांत जल में आया ...!
फूल गया है सेमर
हुआ लाल पानी
दैत्यों की कहानी तो
कहती थी नानी
बढ़ गयी है पशुता
मेंढक धरे ताज
शांत जल में आया ...!
उथला हो गया है
तंत्र का आँगन
अब फना हो रहा है
कँवल का जीवन
तड़प रहे है जलचर
न्याय मांगे आज
शांत जल में आया ...
21-04-13
------शशि पुरवार
सेमर -- दलदल ,
तंत्र -- प्रणाली , स्वत्रन्त्र तत्वों का समूह ,
पशुता -- हैवानियत ,दरिंदगी ,
कँवल -कमल
Saturday, April 20, 2013
रिश्ते .........
रिश्ते
तांका --
1
दोस्ती के रिश्ते
पावन औ पवित्र
हीरे मोती से
महकते गुलाब
जीवन के पथ पर .
2
दो अजनबी
जीवन के मोड़ पे
कुछ यूँ मिले
सात फेरो में बंधा
जन्मों जन्मों का रिश्ता .
3
चाँद सितारे
उतरे हैं अंगना
स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
आशीष रुपी झरे
नेह हरसिंगार .
4
ये कैसे रिश्ते
नापाक इरादों से
आतंक मारे
सिमटते जज्बात
बिखरते हैं ख्वाब .
5
नाजुक रिश्ते
कांच से ज्यादा कच्चे
पारदर्शिता
विश्वास की दीवारे
प्रेम का है आइना .
-------शशि पुरवार
Wednesday, April 17, 2013
तन्हाई में सिमटी रात ........!
1 सर्द हुआ मौसम
तन्हाई में
सिमटी रात
कोई तो जलाओ
अब अलाव .
2
रुत बदले
मौसम ने ली
अंगडाई
शीत लहर से
खामोशी भी
घबराई .
3
चाँदी के कण
जो उतरे धरा पे
बिछी चाँदनी
लहू को जमा दे
कैसे निभाए फर्ज .
4
पीर धरा की
सही न जाये
तपता रेगिस्तान
अब सर्द मौसम
मलहम लगाये .
5
बन जाऊं में
शीतल पवन
जो तपन मिटाऊं
बहती जलधारा
प्यास बुझाऊं .
6
सर्द मौसम में
सिकुड़ जाती है यादें
जम जाता है लहू
बिखरी बाते .
7
सर्द मौसम में
सिमटता धरा का
अंग ,
बर्फ का कण
पिघलता है
रिश्तों की
तपिश में
8
सर्द मौसम
गरीब मांगे बस
दो गज का कपडा
प्यार के दो बोल बस .
9
कितनी प्यारी राते
चाँद तारो के संग
बचपन की प्यारी बाते
बीते पलछिन .
10
रचाओ हाथ अब
अब मेंहंदी
हार बिंदी कंगना
सजन पधारे अंगना .
कितनी करायी मनुहार
फिर दिखा के ठसक
साजन चले ससुराल .
11
झरते श्वेत कण
ढक रहे थे
पेड़ रस्ते
और साथ में
जम रहे थे
रिश्तो में
जज्बात .
12
दूर तलक
खाली पड़े थे
रस्ते ,
ठिठुरती
सर्द रात में
सड़क किनारे
कोई सिमटा फटी
कामरी में .
13
जम गए थे रिश्ते
बर्फ की तरह
बहता है लहु
अब आँखों में .
14
बर्फीली वादियों में
सन्नाटे को चीरती
ख़ामोशी में
चहलकदमी करती
देश की खातिर
अकेली जान .
---------शशि पुरवार
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