1
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
4
पीड़ा फिर क्यों भड़की ?
भाव सभी सोए
खोली दिल की खिड़की ।
5
क्या पाप किया मैंने !
गरल भरा प्याला
हर रोज़ पिया मैंने ।
शशि पुरवार
वाह !!! बहुत बढ़िया,उम्दा प्रस्तुति !!! शशि जी,,,
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
बातें मन की कह जाने दो..
ReplyDeleteबातें मन की गहन पीड़ा को लिए हुये ..... एक ही पोस्ट आपकी दो बार लिखी गयी है । एडिट कर लें
ReplyDeleteमन के दर्द को कुछ शब्दों में कहने का गहन प्रयास ... ओर सफल रहा ये प्रयास ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति ...
बहुत खूबसूरती से लिखे गए माहिया, गाते गाते मन प्रसन्न हो गया। हार्दिक बधाई शशि....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी..
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी..
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति शशि जी !
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waah bahut khub
ReplyDeleteबहुत खूब कही आपने दिल की बात |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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मन के दर्द को सुन्दर शब्दों में प्रस्तुति,आपका आभार.
ReplyDeleteमन की पीड़ा, नन्हे-नन्हे बिम्बों में सुंदरता से व्यक्त की गई हैं.
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