Monday, April 22, 2013

हर मछली को लील रहा



शांत जल में आया है   
कैसा यह भूचाल
हर मछली को लील रहा 
जल का नाग आज.

विषधारी हो गये है
मगरमच्छ सारे
शैवालो पर बैठकर  
शिकारी डेरा डारे
फँस गयी यहाँ जलपरी
धँस गई आवाज

शांत जल में आया ...!

फूल गया है सेमर
हुआ लाल पानी
दैत्यों की कहानी तो
कहती थी नानी
बढ़ गयी है पशुता
मेंढक धरे ताज
शांत जल में आया ...!

उथला हो गया है
तंत्र का आँगन
अब फना हो रहा है
कँवल का जीवन
तड़प रहे है जलचर 
न्याय मांगे आज 
शांत जल में आया ...

21-04-13
  ------शशि पुरवार 

 सेमर -- दलदल ,
 तंत्र -- प्रणाली , स्वत्रन्त्र तत्वों का समूह ,
 पशुता -- हैवानियत ,दरिंदगी ,
  कँवल -कमल
 

25 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार -

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  2. बहुत सुन्दर रचना!

    बेख़ौफ़ दरिन्दे
    कुचलती मासूमियत
    शर्मशार इंसानियत
    सम्बेदन हीनता की पराकाष्टा .
    उग्र और बेचैन अभिभाबक
    एक प्रश्न चिन्ह ?
    हम सबके लिये.


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  3. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  4. खूबसूरत रचना...
    संवेदन शून्यता की ओर एक और कदम...

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  5. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति....

    सस्नेह
    अनु

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  6. शस्य श्यामला धरा बनाओ।
    भूमि में पौधे उपजाओ!
    अपनी प्यारी धरा बचाओ!
    --
    पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!

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  7. बहुत ही सुंदर रचना ...

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  8. vastvikta ka vivast roop ..darshaati rachna ...

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  9. छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
    नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |

    नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
    बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।

    नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।
    फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।

    गोहन = साथी-संगी
    गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला
    गोही = गुप्त
    नरदारा=नपुंसक
    नरभूमि=भारतवर्ष
    फुदकी=छोटी चिड़िया

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  10. सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...

    आप की ये रचना 26-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
    पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।

    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।

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  11. तूफान ही आया हुआ है आज कल ...
    पता नहीं समय के गर्भ में क्या छिपा है .,.. इन दरिंदों का खात्मा कब होना है ...

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  12. सुंदर रचना ...........पता नहीं पशुता से भी नीच हो रही घटनाओं से कैसे मुक्ति मिलेगी...........

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  13. बहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई शशि....

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  14. विषधारी हो गये है
    मगरमच्छ सारे
    शैवालो पर बैठकर
    शिकारी डेरा डारे
    फँस गयी यहाँ जलपरी
    धँस गई आवाज------

    वर्तमान की नब्ज को टटोलती रचना
    सुंदर प्रस्तुति
    बधाई

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  15. सुदंर, कोमल, हृदयग्राही काव्य है आपका. पढ़ कर अच्छा लगा.

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  16. उथला हो गया है
    तंत्र का आँगन
    अब फना हो रहा है
    कँवल का जीवन
    तड़प रहे है जलचर
    न्याय मांगे आज
    शांत जल में आया
    Shashi ji bahut hi sundar rachana .....aj ke samay ko bahut hi sundar dhang se aap ne rekhankit kiya hai ....lajabab rachana ke liye sadar aabhar .

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  17. गहरे अर्थ पिरोती रचना..

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  18. सत्य उकेरा है ...!!वाकई आजकल स्थिति गंभीर है ...

    ReplyDelete
  19. वाह! बहुत खूब रचना लिखी आपने | बधाई |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  20. बहुत ही सुंदर रचना!
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

    ReplyDelete
  21. दिल को छू गई आपके ये रचना

    ReplyDelete

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