हर मछली को लील रहा
शांत जल में आया है
कैसा यह भूचाल
हर मछली को लील रहा
जल का नाग आज.
विषधारी हो गये है
मगरमच्छ सारे
शैवालो पर बैठकर
शिकारी डेरा डारे
फँस गयी यहाँ जलपरी
धँस गई आवाज
शांत जल में आया ...!
फूल गया है सेमर
हुआ लाल पानी
दैत्यों की कहानी तो
कहती थी नानी
बढ़ गयी है पशुता
मेंढक धरे ताज
शांत जल में आया ...!
उथला हो गया है
तंत्र का आँगन
अब फना हो रहा है
कँवल का जीवन
तड़प रहे है जलचर
न्याय मांगे आज
शांत जल में आया ...
21-04-13
------शशि पुरवार
सेमर -- दलदल ,
तंत्र -- प्रणाली , स्वत्रन्त्र तत्वों का समूह ,
पशुता -- हैवानियत ,दरिंदगी ,
कँवल -कमल
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार -
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबेख़ौफ़ दरिन्दे
कुचलती मासूमियत
शर्मशार इंसानियत
सम्बेदन हीनता की पराकाष्टा .
उग्र और बेचैन अभिभाबक
एक प्रश्न चिन्ह ?
हम सबके लिये.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना...
ReplyDeleteसंवेदन शून्यता की ओर एक और कदम...
बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
ReplyDeleteशस्य श्यामला धरा बनाओ।
भूमि में पौधे उपजाओ!
अपनी प्यारी धरा बचाओ!
--
पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!
बहुत ही सुंदर रचना ...
ReplyDeletevastvikta ka vivast roop ..darshaati rachna ...
ReplyDeleteछली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
ReplyDeleteनष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।
नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।
गोहन = साथी-संगी
गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला
गोही = गुप्त
नरदारा=नपुंसक
नरभूमि=भारतवर्ष
फुदकी=छोटी चिड़िया
सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना 26-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
सच कहा
ReplyDeleteतूफान ही आया हुआ है आज कल ...
ReplyDeleteपता नहीं समय के गर्भ में क्या छिपा है .,.. इन दरिंदों का खात्मा कब होना है ...
सुंदर रचना ...........पता नहीं पशुता से भी नीच हो रही घटनाओं से कैसे मुक्ति मिलेगी...........
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई शशि....
ReplyDeleteविषधारी हो गये है
ReplyDeleteमगरमच्छ सारे
शैवालो पर बैठकर
शिकारी डेरा डारे
फँस गयी यहाँ जलपरी
धँस गई आवाज------
वर्तमान की नब्ज को टटोलती रचना
सुंदर प्रस्तुति
बधाई
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
सुदंर, कोमल, हृदयग्राही काव्य है आपका. पढ़ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteउथला हो गया है
ReplyDeleteतंत्र का आँगन
अब फना हो रहा है
कँवल का जीवन
तड़प रहे है जलचर
न्याय मांगे आज
शांत जल में आया
Shashi ji bahut hi sundar rachana .....aj ke samay ko bahut hi sundar dhang se aap ne rekhankit kiya hai ....lajabab rachana ke liye sadar aabhar .
गहरे अर्थ पिरोती रचना..
ReplyDeleteसत्य उकेरा है ...!!वाकई आजकल स्थिति गंभीर है ...
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब रचना लिखी आपने | बधाई |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत ही सुंदर रचना!
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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दिल को छू गई आपके ये रचना
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