समय के साथ सब बदल जाता है। यह परम सत्य है। आदमी पहले दूसरों को मूर्ख बनाता था। आज खुद को मूर्ख बनाता है। आज मेरी मुलाकात अपनी ही परछाई से हो गयी। अब आप कहेंगे मूर्ख है। कोई परछाई से भी मिलता है। लेकिन हम मिले और जी भर कर मिले। जाने दीजिये आप सोचेंगे। आज सच में एक मूर्ख से पाला पड़ गया है। हमें क्या आप सोचते रहें। इंसान मूर्ख ही तो है। आज स्वयं को मूर्ख कहने में हमें कोई कोताही नहीं। आभाषी दुनियां के मूर्खता पूर्ण व्यवहार ने हमें होशियारी सीखा दी है।हम कितने सीधे हैं। लोग लल्लू भी है होसियार भी है।जब लम्बे समय से जुड़े हुए लोग पूछते है। आप कौन है। क्या करतें है। सच पूछों दिल में छुरियां चल जाती है।क्या कभी पढ़ते नहीं है। बस आजकल गप्पा बाजी करना ही शौक बन गया है। खुद को उच्च कोटि का साबित करने के लिए बार बार बिना सिर पैर की बात के बात करतें है। खैर जाने दीजिये। आज मेरी परछाई ने मुझे ही मूर्ख कह दिया। हुआ यूँ -
मेरी परछाई कैसी हो?
प्रश्न अजीब था। किन्तु तीर तरकश से निकल चुका था। वैसे भी हम जाने माने साहित्यकार है तो परछाई भी वही हुई। किन्तु उसने हमीं पर पलटवार किया।
कितना स्यापा फैला रखा है। काम के न काज के। बस दिन भर उजुल फुजूल लिखकर लोगों को बरगलाते हो। कोई काम धाम नहीं है क्या ? किसे मूर्ख बनाते हो। खुद को।
जबाब सीधे दिल को भेद गया। घर में कोई बकर बकर नहीं सुनता तो हमने भी दुनिया को सुनाकर खुद को महान बना लिया। ससुरा आज तक किसी ने तारीफ नहीं की है। घर में पत्नी बच्चे, माँ - बाप के लिए हम नकारा थे। कहतें हैं घर की मुर्गी दाल बराबर। सो थाली में कभी दाल भी नहीं मिलती थी। हमने सोचा उल्लू क्या जाने अदरक का स्वाद। आज इंसान ने मूर्खता के पैमाने छलका दिए हैं। इस विचार ने हमें असीम शांति प्रदान की। किन्तु हमारी परछाई थी तो सत्य कैसे ना जानती। आज हमारे मूर्खता पूर्ण प्रश्न ने हमें मूर्ख सिद्ध कर दिया।
वैसे मूर्खता के कई प्रकार होते हैं। एक परिभाषा में मूर्खता को कैसे परिभाषित करें। खुशफहमी मूर्खता को सर्वोपरि बनाती है। खुद का प्रचार करो, विज्ञापन करो और खुद को महान समझो। हमारे इर्द गिर्द नजर घुमाये ऐसे मूर्खो की भरमार है। शर्मा जी जब देखो ऊँट की गर्दन ताने घूमते रहतें है। सुना है बहुत बड़ा काम किए है। किन्तु अडोसी पडोसी को पता भी नहीं है। सो ससुरे उनके बुद्धिजीवी दिमाग को क्या जाने। वो ऐसे तने रहतें है जैसे दुनियाँ भर का बोझ उन्हीं के सर पर है। एक बार सिंह अंकल हमें बगीचे में मिल गए थे। और बोले लल्ला क्या करतें हो
हमने लगे हाथो कह दिया - कवी है
कवी क्या होता है। बेचारी दुखियारी आत्मा।
हमारा चौड़ा सीना सिकुड़ कर पिचके गुब्बारे सा हो गया।समाज का यही दोष है दूसरों की पतंग काटो और आनंद लो। सभी रिश्ते आभासी होने लगे। खुद को महान समझने वाले मूर्ख अहंकार में एक दूसरे से कन्नी काटतें हैं। खुद की चार दीवारी में कैद अकेलेपन के साथी ऊँट की गर्दन ताने फिरते हैं। किसी से बात करने के लिए गर्दन नीचे करनी होती है। जो कोई करेगा नहीं। हम आजतक इस दुनियादारी को समझ नहीं सके कि गर्दन ऊँची क्यों है।
कल एक गोष्ठी में देखा शर्मा जी तन कर बैठे हुए थे। अडोसी - पडोसी उनके कर्मो के बारे में नहीं जानते थे। वे विशुद्ध लेखक थे। उजुल फिजूल लिखते लिखते खुद को महान लेखक बना लिया। बड़ी अदा से घूमते थे। जैसे वही अक्ल दराज बाकी मूर्खो की बारात। खुशफहमी इंसान को जिंदादिल बना देती है। कम से कम सर में शंका का चूरन रखने से खुशफहमी का तेल लगाना ज्यादा अच्छा है। हम शर्मा जी को देखते ही रह गए। कितनी बड़ी हस्ती बन गए। लोग एक फोटो चिपकाने के लिए तरसने है। एक तो चिपका ही दो। शर्मा जी खुश है। किन्तु उन्हें क्या पता लोग उनका उपयोग किये जा रहे हैं।फोटो शर्मा जी की चिपका कर अपना प्रचार कर रहें है। जे हमरे खास मित्र है तो हम भी खास बन गए।लोग एक दूसरे के कंधे पर पैर रखकर चढ़ने लगे है। बेहद खुश है कि हमने बहुत बड़ा तीर मार लिया है।
आजकल हमारे एक मित्र जिन्हें हमसे बेहद मोहब्बत है। जब देखो हमारी भाषा - विचारों को चुराते रहते हैं।खुद को महान सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहतें है। चोरी करके महान बन गए। उन्हें आभासी दुनिया में कह दिया मेरी रचना है तो झट से ब्लॉक कर दिया। एक दूसरे को उल्लू बनाने से अच्छा है खुद को उल्लू बना लो।हमने सोचा रचना चोरी की है गुण नहीं। खुद को खुश कर लिया।
अब ज्यादा क्या कहें। यही कहेंगे खुद को मूर्ख बनाना अपने स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। हम तो यही कहेंगे खुद को खूब मूर्ख बनाओ। इसमें परमानन्द है। आप कहेंगे कैसे तो सुने -
खुद को महान समझने से आप कुछ महान कार्य करने का प्रयास करेंगे।इससे आप व्यस्त रहेंगे। कुछ अच्छा कार्य करेंगे।
खुद को देखने - समझने के आदी हो जायेंगे तो दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं जायेगा। बिन सिरपैर की बातों को नजरअंदाज करेंगे तो बीपी शुगर जैसी बिमारी कोसो दूर होगी।
किसी बात की चिंता नहीं होगी क्यूँगी आप खास है , दूसरो को मूर्ख जरूर समझे। यह खुशफहमी आपको खुश रखेगी।
एक दूसरे को मूर्ख समझने की प्रथा से कुंठा, द्वेष, जलन से मुक्ति मिलेगी। और आप खुश फ़हम रहेंगे।
आपको अकेले में भी आनंद आने लगेगा। घर वाले आपके कोप का भाजन नहीं होंगे।
दोस्त, यार, हमजोली आपके मूर्खता को बुद्धिजीवी सा मान देंगे।
कोई सुने य ना सुने आप खुद को जरूर सुनेंगे।
हर तरफ परमानन्द होगा। लोगों की छींटाकसी पर आप मुस्कुरायेंगे और अपनी मूर्खता का ख़िताब उन्हें दे देंगे कि मूर्ख है। समझता नहीं है।
तो खुशफहमी को पहनते रहें। खुद को मूर्ख बनाते रहें। जिंदादिली दिखाते रहें।
खुद को लोगों को झेलने का सुख देते रहें।खुद भी हम मित्रों को झेलते रहे।
सभी हार्मोन कुशलता से कार्य करेंगे। खुश फहमी बीमारी से मुक्ति दिलाएगी। आप मुस्कुरायेंगे तो हम भी मुस्कुरायेंगे। शुक्रिया आपने हमारी मूर्खता को तवज्जो दी। मुर्खानंद की जय हो।
शशि पुरवार
जनसंदेश टाइम्स लखनऊ में प्रकाशित व्यंग्य