कितना बे-गैरत है जमाना
चाहते है एक आशियाँ बनाना .
मिटटी - गारा तो लाये
और फिर सामान फैला कर
इक टूटा आशिया बना दिया .
मानव मुल्यो की क्या जगह है यहाँ ,
पर कीमत तो आको
मानव खुद ही बिक जायेगा यहाँ !
प्रेम क्या है ?
पूछो इन माटी के पुतलो से -
" पैसा ही तो प्रेम है ".
सुन्दरता क्या है ?
पूछो इन हस्तियों से ,
" पैसा ही सबसे सुन्दर है " .
इंसानियत को न जानने वाले ये मानव
इंसानियत का ही ढोल पीटते है !
जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले ये मानव ,
सभ्यता को कौन सा रूप प्रदान करते है ?
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है
: - शशि पुरवार
यह कविता पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुकी है
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Beautiful Shashi...Words have so much depth...
ReplyDeletethanks saru
ReplyDeleteसंजय जी
ReplyDeleteआपका बहुत- बहुत धन्यवाद . आपको कविताये पसंद आई .
bahut shukriya aapke bahumoolya tippani ka jiske madhyam se aapke blog se jud rahi hoon.bahut achche bhaav ukeren hain kavita me likhte rahiye.
ReplyDeletepls word veryfication hata den to tippani karne me aasani hogi.
ReplyDeletethanks rajesh kumari ji .
ReplyDeleteजिंदगी से खिलवाड़ करने वाले ये मानव ,
ReplyDeleteसभ्यता को कौन सा रूप प्रदान करते है ?
जो हमें पसंद नहीं हो और जो इनको पसंद है वही करते हैं यह ...और आज मानवता को इन्होने किस गर्त में धकेल दिया है यह सबके सामने है .....आपका आभार
आपका लेखन यूँ ही अनवरत रूप से जारी रहे इसके लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteशशी जी आपकी रचनायें दिल से लिखी व भावों से भरी हैं...
ReplyDeleteअद्भुत लेखन है आपका,मन मोह लिया आपने...
धन्यवाद , केवल राम जी
ReplyDeleteधन्यवाद , इंदु जी
ReplyDeleteआप आये और रचनाये पसंद की ...... आपका धन्यवाद
Manavta ko gaharaye tak sanrakshit karney ki disha mai ek manviye paryas ko NAMAN .....Tathastu
ReplyDeleteomparkash ji
ReplyDeletedhanyavad . apko yaha dekhkar khushi hui.