शिकवा क्या करें इस जहाँ से ,
मानवीय संवेदनाओ से परे है यह .
तकदीर के हाथो खेल रही ,
जीवन की तस्वीर है यह.
संवेदनाओ के हवन कुण्ड से निकलती ,
चमक नहीं ये बेबसी की लपटे है.
दम तोड़ती है यहाँ संवेदनाए ,
क्यूंकि , बे- गैरत इंसानो से ,
भरा है यह जहाँ.
लालच की है इसकी दीवारें .
स्वाहा होती है यहाँ जिदगियाँ , पर
कौन उन्हें संभाले ......!
कतरा - कतरा बह रहा है खून ,
उजड़ रहे है चमन ,
फिर भी कोशिश यही है कि,
हम इन्हें बचा ले .......!
मासूम होती है ये जिंदगानी
क्यूँ इसे नरक बना दे .
कोई तो समझाओ , कोई तो बताओ ,
इस हवन -कुण्ड में .......,
इंसानो को नहीं , अपने लालच , और
इस हवन -कुण्ड में .......,
इंसानो को नहीं , अपने लालच , और
बुराइयो को जलाओ .......!
: - शशि पुरवार
आज देश - विदेश में नशा एक आम चीज हो गयी है , नशे की लत लोगो में बढती जा रही है . सिगरते , तम्बाकू ., शराब ...... चरस , गाँजा........ आदि . अनेक प्रकार के साधन उपलब्ध है और लोग जानते हुए भी नशे का सेवन करते है और इन चीजो ने बच्चो और उच्च वर्गीय महिलाओं को भी अपना गुलाम बना लिया है . सरकार को इन वस्तुओ से कमाई होती है तो वह भी अपने मतलब के लिए बंद नहीं करती और इन्हें बनाने वालो को तो सिर्फ अपनी मोटी रकम से मतलब होता है .
मैंने नशे के ऊपर लेख लिखा था , जो बहुत पहले पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है. पर ये गन्दा धुआं आज भी अपने पैर पसार रहा है . आज मन हुआ कि इस पर कविता लिख दू . यहाँ कभी अपना लेख भी प्रस्तुत करूंगी .
अगर मेरे लेख या कविता से किसी को भी कुछ फर्क पड़ता है , तो मुझे ख़ुशी होगी कि प्रयास बेकार नहीं हुआ.............!
: - शशि पुरवार
आज देश - विदेश में नशा एक आम चीज हो गयी है , नशे की लत लोगो में बढती जा रही है . सिगरते , तम्बाकू ., शराब ...... चरस , गाँजा........ आदि . अनेक प्रकार के साधन उपलब्ध है और लोग जानते हुए भी नशे का सेवन करते है और इन चीजो ने बच्चो और उच्च वर्गीय महिलाओं को भी अपना गुलाम बना लिया है . सरकार को इन वस्तुओ से कमाई होती है तो वह भी अपने मतलब के लिए बंद नहीं करती और इन्हें बनाने वालो को तो सिर्फ अपनी मोटी रकम से मतलब होता है .
मैंने नशे के ऊपर लेख लिखा था , जो बहुत पहले पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है. पर ये गन्दा धुआं आज भी अपने पैर पसार रहा है . आज मन हुआ कि इस पर कविता लिख दू . यहाँ कभी अपना लेख भी प्रस्तुत करूंगी .
अगर मेरे लेख या कविता से किसी को भी कुछ फर्क पड़ता है , तो मुझे ख़ुशी होगी कि प्रयास बेकार नहीं हुआ.............!
Nice composition...Great poem...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeletevery very nice shashi jee keep on fighting for good causes
ReplyDeletethanks saru
ReplyDeletethanks amrendra ji
ReplyDeletethanks rajendra ji
ReplyDeleteसुन्दर रचना बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteBahut strong subject par poem......Good one...keep it up. Shilu
ReplyDeletethanks shishir ........:)
ReplyDeletenice to see u here .
its really great . keep it up ..
ReplyDeletenice composition .
thank you jai krishna rai ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteशशि पुरवार जी !
लेखनी का सदुपयोग किया है आपने !
नशे का गर हवन - कुण्ड है ,
तो लालच की है इसकी दीवारें .
स्वाहा होती है यहां ज़िंदगियां ,
पर
कौन उन्हें संभाले ......!
अजी और कौन संभालेगा … यह काम आप-हम जैसे रचनाकारों को ही करना पड़ेगा :)
आपके लेख की भी प्रतीक्षा रहेगी ।
मैंने भी नशाखोरी के खिलाफ़ काव्य लिखा है … कभी ब्लॉग पर भी लगाऊंगा …
पुनः अच्छी समाजोपयोगी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया राजेंद्र जी ,
ReplyDeleteआप आये और हमारा उत्साह बढाया .
आपकी काव्य रचना का हमें भी इंतजार रहेगा .
बहुत पवित्र और कल्याणकारी भाव हैं आपके.
ReplyDeleteआपकी कविता दिल को छूती है.
इस पोस्ट के बारे में मुझे बताने के लिए आपका
बहुत बहुत आभार.
kavita k through apne bahut achi baat kahi.....insaan aaj nasha kar k apni zindgi barbad kar rahe hai........zindgi bahut anmol hai,uski kimat samjhe...
ReplyDeletethanks surbhi
ReplyDeletethanks rakesh ji .
ReplyDeleteThanx for addressing an important issue
ReplyDeleteअनमोल जिन्दगी को बचाने के लिए अपनी कलम के जादू से एक बहुत ही अच्छी कविता लिखी शशि जी आपने! हम नशाखोरी और दूसरी गन्दी आदतों से दूर या छोड़ने के लिए आपकी और रचनाओं का इंतज़ार रहेगा !
ReplyDeleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है शशि जी !- बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteमौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ReplyDeleteये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है
सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
मुस्कराहट तबस्सुम हंसी कहकहे
ReplyDeleteसब के सब खो गए हम बड़े हो गए
शजर शाख ऐ गुल गुले- खुशबु
सब क्या है दरख़्त ऐ जड़े हो गए
नशा ऐ शोक मज़ा आदत मजबूरी
यह राहे फ़ना है जो गए उजाड़े गए
jane kyu jhonk dete hai khud ko nashe ke iss hawan kund me ...no words to say ...Behtreen
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/