जाने कहाँ आ गए हम
छोड़ी धरती
चूमा गगन .
आकांशाओ के वृक्ष पर
बारूदो का ढेर बनाया
तोड़े पहाड़ , कटाये वन
दूषित कर पवन ,रोग लगाया
सूखी हरीतिमा की छाँव
सिमटे खेत , गाँव
बना मशीनी इंसान
पत्थर की मूरत भगवान .
जग का बदला स्वरुप
नए उपकरण ,
मशीनी इंसान ,
रोबोट सीखे काम ,
नए नए आविष्कार
खूब फला कृत्रिम व्यापार
मशीनी होते काम
मानव चाहे पूर्ण आराम
माथे की मिट जाये शिकन .
भर बारूद , रोकेट
संग, उड़ चला अंतरिक
विधु पे पड़े कदम
मिला नया मुकाम ,
पर धुएं में मिले जहर से
कम होती ओजोन की छाँव
सौर मंडल पर भी
प्रदुषण के बढ़ते कदम
यह हार है या जीत
जब खतरा बन रही
जीवन पर , अविष्कारों
की बढती भीड़
न बच सकी धरणी
न छूटा गगन .
-------------शशि पुरवार
हमें इतनी सुन्दर धरोहर मिली थी, हम नष्ट करने पर तुले हैं।
ReplyDeletesachhi...jeevandayani maa ko noch rahen hain...nasht karne par tule hain...
ReplyDeletenice poem shashi
bless u
anu
आपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी है .उम्दा पंक्तियाँ .
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बिल्कुल सही कहा आपने...! आगे बढ़ते बढ़ते हम क्या कुछ खोते जा रहे हैं.... इसके बारे में सोचने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है..! बहुत बढ़िया रचना !
ReplyDelete~सादर !
कलयुग की इस रेश में,मशीन बना इंसान
ReplyDeleteअविष्कार करते रहे ,भूल गये भगवान,,,,,,,,
RECENT P0ST फिर मिलने का
सार्थक रचना..
ReplyDeleteहम आगे तो बढ़ रहे है.पर प्रकृति के मोल को
नष्ट करके..जो भविष्य के लिए उचित नहीं...
आपकी रचनायें दिल को छू जाती हैं, गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteये हार है या जीत ... बस कभी कभी ये नहीं समझ आता ..
ReplyDeleteपर फिर भी निर्माण, सृजन तो होता रहेगा ...
लाजवाब रचना है ...
कल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
पूर्ण अर्थ लिए हुए खूबसूरत रचना
ReplyDeletesach hai ki ham paryawaran par bahut atyachar kar rahe hain
ReplyDeleteदुःख तो इस बात का है ..की सब कुछ जानने पर भी ...हम कुछ नहीं कर रहे ......something substantial!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण.... अपनी पृथ्वी के पर्यावरण से छेड़छाड़ के बाद अन्य ग्रहों की ओर ..बढ़ चले हम....बेहद मार्मिक प्रस्तुति....
ReplyDeleteयह विकास कहीं हमारे विनाश का कारण न बने...बहुत सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteWe have done so much wrong in the name of development. Wish we can maintain a balance. Thought provoking poem.
ReplyDeleteयह तथाकथित दिशाहीन विकास ही सर्वनाश का कारण बनता जा रहा है ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई ।
Very meaningful, Shashi!
ReplyDelete