माँ उदास
मारती रही औलाद
तीखे संवाद ,
भयी कोख उजाड़ .
बरसा सावन तो
पी गए नयन
दबी सिसकियां
शिथिल तन
उजड़ गयी कोख
तार तार दामन .
खून से सने हाथ
भ्रूण न ले सके सांस
चित्कारी आह
हो रहा गुनाह
माँ की रूह को
छलनी कर
सिर्फ पुत्र चाह .
जिस कोख से जन्मे देव
उसी कोख के
अस्तित्व का सवाल
सृष्टि की सृजक नारी
आत्मा जार जार
हो रहा कत्लोआम
परिवर्तन की पुकार .
माँ उदास ......भयी कोख उजाड़ ....!
------- शशि पुरवार
मार्मिक......
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.....
सस्नेह
माँ हैं उदास
ReplyDeleteबेटी नहीं हैं पास
कोख कर रही हैं विलाप
चाह पुत्रो की
कर रही भ्रूण का नाश
समझ नहीं किसी को
बेटी भी में भी तो जान हैं
क्यूँ कर रहे हो क़त्ल
आज बेटी नहीं तो
कल ये सृष्टि नहीं
सहेज लो इसे आज
नही तो करते रहोगे
फिर पश्च्याताप
बहुत सुन्दर शशि जी
माँ के दर्द को सच्चाई है ये
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति....
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
पर तुमने-?
ReplyDeleteपर जमने से पहले ही काट डाला
शरीर में जान-?
पड़ने से पहले ही मार डाला,
आश्चर्य है.?
खुद को खुदा कहने लगे हो
प्रकृति और ईश्वर से
बड़ा समझने लगे हो
तुम्हारे पास नहीं है।
कोई हमसे बड़ा सबूत,
हम बेटियां न होती-?
न होता तुम्हारा वजूद......
RECENT POST...: दोहे,,,,
भ्रूण हत्या से घिनौना ,
ReplyDeleteपाप क्या कर पाओगे !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
ऐश क्या ले पाओगे !
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !
माँ का दर्द समझना आसान नहीं. सुन्दर चित्र और कविता.
ReplyDeleteकाश हम भूर्ण हत्या रोक सकते ...और उस माँ की पीड़ा को समझ सकते जो इन सब को अपने ऊपर झेलती हैं ...मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत मार्मिक...काश माँ का दर्द हम समझ सकते...
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