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Saturday, July 7, 2012

माँ उदास ....!



माँ उदास
मारती रही औलाद 
तीखे संवाद ,
भयी कोख उजाड़ .

बरसा सावन तो
पी  गए नयन
दबी सिसकियां
शिथिल तन
उजड़ गयी कोख
तार तार दामन .

खून से सने हाथ 
भ्रूण न ले सके सांस 
चित्कारी आह 
हो रहा गुनाह
माँ की रूह को 
छलनी कर 
सिर्फ पुत्र चाह .

जिस कोख से जन्मे देव 
उसी कोख के
अस्तित्व का सवाल
सृष्टि की सृजक नारी 
आत्मा जार जार 
हो रहा कत्लोआम 
परिवर्तन की पुकार .
                   माँ उदास ......भयी  कोख उजाड़ ....! 
-------    शशि पुरवार





9 comments:

  1. मार्मिक......
    बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
    सस्नेह

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  2. माँ हैं उदास
    बेटी नहीं हैं पास
    कोख कर रही हैं विलाप
    चाह पुत्रो की
    कर रही भ्रूण का नाश
    समझ नहीं किसी को
    बेटी भी में भी तो जान हैं
    क्यूँ कर रहे हो क़त्ल
    आज बेटी नहीं तो
    कल ये सृष्टि नहीं
    सहेज लो इसे आज
    नही तो करते रहोगे
    फिर पश्च्याताप

    बहुत सुन्दर शशि जी

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  3. माँ के दर्द को सच्चाई है ये
    मार्मिक अभिव्यक्ति....

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  4. पर तुमने-?
    पर जमने से पहले ही काट डाला
    शरीर में जान-?
    पड़ने से पहले ही मार डाला,
    आश्चर्य है.?
    खुद को खुदा कहने लगे हो
    प्रकृति और ईश्वर से
    बड़ा समझने लगे हो
    तुम्हारे पास नहीं है।
    कोई हमसे बड़ा सबूत,
    हम बेटियां न होती-?
    न होता तुम्हारा वजूद......

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  5. भ्रूण हत्या से घिनौना ,
    पाप क्या कर पाओगे !
    नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
    ऐश क्या ले पाओगे !
    जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
    एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !

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  6. माँ का दर्द समझना आसान नहीं. सुन्दर चित्र और कविता.

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  7. काश हम भूर्ण हत्या रोक सकते ...और उस माँ की पीड़ा को समझ सकते जो इन सब को अपने ऊपर झेलती हैं ...मार्मिक प्रस्तुति

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  8. बहुत मार्मिक...काश माँ का दर्द हम समझ सकते...

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