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Thursday, July 12, 2012
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जेन जी का फंडा सेक्स, ड्रिंक और ड्रग
आज की युवा पीढ़ी कहती है - “ हम अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं समय बहुत बदल गया है …. हमारे माता पिता हमें हर वक़्त रोक टोक करते हैं, क्...
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बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
man ko chuti rachan
ReplyDeleteहर पथ पर अकेला सा वो आदमी .....क्या कहें....मन के भाव कुछ अलग से हैं ...आभार
ReplyDeleteशशि दीदी...मन को छूने वाली कविता, आँखों में कही आंसूँ ले आयी.
ReplyDeleteखुद को ही तो छल रहा है आज हर इंसान....दूसरों से संपर्क तो कर रहा है लेकिन सिर्फ सतही. हर इंसान के मन के कोनों में उदासी तो रहती ही है. हर कोई भाग रहा है किसी चीज के पीछे, और छोड़ रहा है इस दौड़ में अपने मन का सुकून, अपने जीवन की शांति. कितना सही लिखा है आपने दीदी...मन को छू गया इस बार, मैं ऐसे ही शब्दों के इंतज़ार में थी. हर इंसान अपने शीशमहल में बैठ कर भी खुश नहीं, उसे चाह है की कोई उसे कहे, vaah क्या शीशमहल है तुम्हारा! क्या किसी के कहने से ही कुछ अच्छा बन पड़ता है...यह तो मन भी जानता है क्या अच्छा, क्या सच्चा और क्या बुरा!
कितने ही झूठे , स्वार्थी शब्द मिल जाये, लेकिन क्या वह असली शहद है? नहीं, तभी तो जैसा की आपने कहा, अंत में तो अकेला ही है आदमी, तो फिर समय रहते क्यों नहीं ठीक होते सभी लोग?
निपट अकेला आदमी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शशि जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना...
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