shashi purwar writer

Monday, March 18, 2013

क्षणिकाएँ

1कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .

जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .

बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .



श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार .
 
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा.

हरसिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल .

श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त .

-------------
छोटी कविता 

१ सजा बंधनवार
ढोलक की थाप
झनक उठी पैजनिया
गूंज उठी शहनाई
स्नेहिल अंगना ,
सजी है डोली
कन्यादान का अवसर
झर झर झरे आशीष
और नैनो से झरे
हरसिंगार .

२ बहाओ पसीना
उठा लो मशाल
राहों मे बिछे कांटे
जाना है पार
भोर का न करो,
इन्तजार
खिलेंगे फूल तो
यह जीवन हरसिंगार .

३ न छोड़ो हिम्मत
जज्बा हो बुलंद
गहरे गर्त मे भी
झरने सा छन्द
कर्म विलक्षण ,तो
महके सुवास
जैसे हरसिंगार .
--- शशि  पुरवार


8 comments:

  1. बहुत प्यारा संयोजन..

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  2. बहुत सुन्दर !!!
    हरसिंगार...
    शब्दों से झरे ,दिल में उतरे...

    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सार्थक हाइकू और कविता,आभार.

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  4. आपकी बेहतरीन रचना कल नयी पुरानी हलचल पर
    कृपया पधारे......राय दें

    ReplyDelete
  5. सार्थक हाइकू ...
    हरसिंगार की कल्पना की कविता है अपने आप में ...

    ReplyDelete
  6. सार्थक और
    सुंदर प्रस्तुति
    बधाई

    ReplyDelete
  7. मनमोहक सुवास..

    ReplyDelete

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