Tuesday, December 17, 2013

हाइकु -- नवपत्रक



मृदा ही सींचे
पल्लवित ये बीज
मेरा ही अंश।


माटी को थामे
पवन में झूमती
है  कोमलांगी।
 .
ले अंगडाई
बीजों से निकलते
नवपत्रक .
प्रफुल्लित है
ये नन्हे प्यारे पौधे
छूना न मुझे
 ये हरी भरी
झूमती है फसलें
लहकती सी।
तप्त धरती
सब बीजों को मिला
नव जीवन ।
बीजों से झांके
बेक़रार पृकृति
थाम लो मुझे
मुस्कुराती है
ये नन्ही सी कालिया
तोड़ो न मुझे।


 पत्रों पे  बैठे
बारिश के मनके
जड़ा है हीरा।
१०
हवा के संग
खेलती ये लताएँ
पुलकित है

११
संग खेलते
ऊँचे होते पादप
छू लें आसमां

                         -- शशि पुरवार

  नमस्ते मित्रो लम्बे अंतराल के बाद ब्लॉग पर पुनः सक्रियता और वापसी कर रहे है , आशा है आपका स्नेह सदा की  तरह मिलता रहेगा।  -- जल्दी आपसे आपके ब्लॉग पर भी मिलंगे।  स्नेह बनाये रखे -- आप सभी का दिन मंगलमय हो - शशि पुरवार




8 comments:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. behatarin prastuti ke badhayi,khubsurat udgaar.

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  3. शानदार हाइकू |
    आशा

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-12-13) को चर्चा मंच 1465 :काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन- में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. प्रकृति के सृजन का रोचक वर्णन।

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