जब मुकद्दर आजमाना आ गया
वक़्त भी अपना सुहाना आ गया
झूमती हैं डालियाँ गुलशन सजे
ये समां भी कातिलाना आ गया
ठूंठ की इन बस्तियों को देखिये
शामे गम महफ़िल सजाना आ गया
आदमी जब राम से रावण बने
आग में खुद को जलाना आ गया
दर्द जब मन की हवेली के मरे
रफ्ता रफ्ता मुस्कुराना आ गया
भागते हैं लोग अंधी दौड़ में
मार औरों को गिराना आ गया
जालिमों के हाथ में हथियार हैं
खौफ़ो वहशत का ज़माना आ गया
मौत से अब डर नहीं लगता मुझे
जिंदगी को गुनगुनाना आ गया
-- शशि पुरवार
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us.. Happy Independence Day 2015, Latest Government Jobs. Top 10 Website
ReplyDeletethank you so much vadhiya ji .... but i am not sir ... :)
Deleteमौत से अब डर नहीं लगता मुझे
ReplyDeleteजिंदगी को गुनगुनाना आ गया ,
यही फलसफा है जो हमे जीना सीखा सकता है ! शशि जी , अति सुंदर
मौत से अब डर नहीं लगता मुझे
ReplyDeleteजिंदगी को गुनगुनाना आ गया
...वाह..उम्दा...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2015) को "नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट" (चर्चा अंक-1957) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आप सभी माननीय मित्रों का तहे दिल से आभार
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
मौत से अब डर नहीं लगता मुझे
ReplyDeleteजिंदगी को गुनगुनाना आ गया ..
बहुत खूब .. जब जिंदगी को गुनगुनाना आ जाता है पब सारे डर हवा हो जाते हैं ... बहुत ही लाजवाब शेर इस सुन्दर ग़ज़ल का ...
बहुत खूब
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
इस सुन्दर गजल के लिए दिल से आभार।
ReplyDeleteबस जिंदगी को गुनगुनाना आ जाये तो सब कुछ अपने आप ही आ जाता है
ReplyDeleteअच्छी गज़ल
बहुत उम्दा ग़ज़ल l
ReplyDeleteकाव्य सौरभ (कविता संग्रह ) --द्वारा -कालीपद "प्रसाद "
मैं आशा करूंगा कि मुझे समय मिलेऔर मैं आपकेब्लाग को पूरा पढ लूं... मेरे ब्लाग पर भी आपको आने का न्योता भेज रहा हूं...
ReplyDeleteचौखट पर आइये...